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पंचम अध्याय : १३५ लिप्ति से एक जलमार्ग मिथिला तक जाता था।' सौराष्ट्र के तैयालग पत्तन ( वेरावल ) से एक जलमार्ग बारबई पत्तन (द्वारका ) तक जाता था। व्यापारी समुद्री मार्ग द्वारा वारिवृषभ ( "दक्षिण का एक स्थान') से पाण्डु मथुरा ( मदुराई ) तक जाते थे।
ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लिखित है कि हस्तिशीर्ष नगर के पोतवणिक् कलिकाद्वीप जजीवा तक गये थे। वसुदेवहिण्डी से ज्ञात होता है कि चारुदत्त समुद्री मार्ग से चीन गया था और लौटते हये स्वर्णभमि, कमलपुर, यवद्वीप, सिंहलद्वीप और बब्बर, यवण होता हुआ सौराष्ट्र पहुँचा था। फाह्यान भी पाटलिपुत्र से चम्पा होता हुआ ताम्रलिप्ति पहुँचा
और वहाँ से सिंहलद्वीप होता हुआ समुद्रीमार्ग द्वारा चीन पहुंचा था। कुवलयमालाकहा में सोपारक से चीन और महाचीन जाने का उल्लेख है ।” सोपारक से रत्नद्वीप, बब्बरकुल जाने के भी समुद्रो मार्ग थे। पाटलिपुत्र से जलमार्गों द्वारा रत्नद्वीप और कुडगद्वीप भो जाने का वर्णन है।' कुवलयमालाकहा में उल्लिखित कुछ स्थानों की पहचान करना कठिन है। अनुमानतः ये स्थान काल्पनिक थे या अब तक नष्ट हो चुके हैं।
प्राचीनकाल में हवाओं का दिशाज्ञान व्यापारियों के लिये अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होता था। उत्तरपूर्वी हवायें भारत से अफ्रीका जाने में
१. ज्ञाताधर्मकथांग ८/८१ २. तेयालग-पट्टणाओ बारवइ गम्मइ-निशीथणि भाग १, गाथा १८३ ३. आवश्यकचूर्णि भाग २, पृ० १५७ ४. ज्ञाताधर्मकथांग १७/१३ । ४. डॉ० मोतीचन्द्र ने अपनी पुस्तक 'सार्थवाह' में कलिकाद्वीप को अफ्रीका का
जंजीवार द्वीप कहा है, ५. संघदासगणि-वसुदेवहिण्डी भाग १ पृ० १४६
स्वर्णभूमि की पहचान बर्मा, कमलपुर की कम्बोडिया, यव द्वीप की जावा से, सिंहलद्वीप की लंका से यवनद्वीप की सिकन्दिया से, और बब्बर की पहचान
बार्बरिकम से की जाती है । ६. घोष, नरेन्द्रनाथ-ऐन अर्ली हिस्ट्री आफ इण्डि या, २६८ ७. कुवलयमालाकहा, पृष्ठ ८८ ८. उद्योतनसूरि-कुवलयमालाकहा, पृ० ६५, ८८ ९. वही, पृ० ८८