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१८६ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन
इससे स्पष्ट होता है कि चूर्णिकाल में भी मनुष्य के जीवन-स्तर के आधार भोजन, आवास और वेष-भूषा ही थे । अतः प्राचीन जैन साहित्य के माध्यम से आर्थिक जीवन के अध्ययन के लिये भोजन, वेश-भूषा, आवास, मनोरंजन, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा पर विचार करना समीचीन होगा ।
भोजन
भोजन मनुष्य के जीवन को प्राथमिक आवश्यकता है । जैन ग्रंथों में विविध प्रकार के खाद्य पदार्थों के उल्लेखों से प्रतीत होता है कि भोजन के लिये खाद्य पदार्थ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे ।' अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार व्यक्ति पौष्टिक एवं स्वादिष्ट भोजन करते थे । दशवैकालिकसूत्र से ज्ञात होता है कि समाज में खाद्य, स्वाद्य, लेय और पेय चार प्रकार के भोजन का प्रचलन था । शरीर के स्वास्थ्य और पुष्टि का ध्यान रखते हुए ऋतुओं के अनुकूल भोजन किया जाता था । दशवैकालिकचूर्ण से सूचना मिलती है कि शरद ऋतु में वात तथा पित्त को नाश करने वाले, हेमन्त में उष्णता प्रदान करने वाले, वसन्त में श्लेष्म को हरने वाले, ग्रीष्म में शीतलता प्रदान करने वाले और वर्षा ऋतु में भी उष्णता प्रदान करने वाले अर्थात् नमी को हरने वाले पदार्थों का सेवन किया जाता था । व्यवहारभाष्य से ज्ञात होता है कि कलमशालि, व्रीहि, तन्दुल, कोद्रव, गोधूम, यव और रालक आदि धान्यों से भाँति-भाँति के " ओदन" बनाये जाते थे । कोद्रव, यव और रालग का भोजन निर्धन लोग करते थे । " निशीथचूर्णि से ज्ञात होता है कि एक निर्धन स्त्री के घर कोद्रव का ही भोजन बनता था। एक बार उसका भाई कहीं दूर देश से आया उसके सम्मान के लिये वह किसी धनी के घर से भोजन हेतु शालि माँग कर
१. निशीथचूर्णि भाग २ गाथा १०२८, १०२९, भाग ३, गाथा ४६५६; आवश्यकचूर्णि भाग १, पृ० १९८
२. दशवैकालिक, ४/१६
३. सरदि वात पित्त हरणि दव्वाणि आहरति हेमन्ते उण्हाणि, वंसते हिमरहाणि गिम्हे सथिकाणि वासासु उण्हवण्णणि, दशवैकालिकचूर्ण, पृ० ३ / ५
४. व्यवहारभाष्य, ६/५५
५. पिंड नियुक्ति गाथा, १६३