Book Title: Prachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Author(s): Kamal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyashram Shodh Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 206
________________ अष्टम अध्याय : १९३ साधारण निवास योग्य, लकड़ी की दीवारों वाले, छप्पर की छतों वाले, चटाई से ढके द्वारों वाले और गोबर से लीपी भूमि वाले होते थे । मनोरंजन सदा से जीवन में मनोरंजन का महत्त्व रहा है । ज्ञाताधर्मकथांग से ज्ञात होता है कि प्रजा के मनोरंजन के लिये राज्य की ओर से पर्याप्त प्रबन्ध किये जाते थे । हाथीगुम्फा लेख से भी ज्ञात होता है कि खारवेल ने अपनी प्रजा के मनोरंजन के लिये बहुत सा धन व्यय करके विशेषं आयोजन करवाये थे । औपपातिक और राजप्रश्नीय आदि जैन ग्रन्थों से यक्षायतनों का अस्तित्व ज्ञात होता है । जिनका स्वरूप वर्तमान मनोरंजन गृहों (क्लबों) जैसा रहा होगा | अवकाश के समय यहां एकत्र होकर लोग नृत्य, संगीत, मल्लयुद्ध, कथा-कहानी, बाजीगिरों तथा जादूगरों के विविध खेलतमाशों का आनन्द लेते थे ।' वसुदेवहिण्डी से ज्ञात होता है कि गाँव के बाहर ऐन्द्रजालिक जादू का खेल दिखाते थे । दशवैकालिकचूर्ण में भी यत्र-तत्र आजीविका के लिये लोगों को अपनी ओर आकृष्ट करने वाले ऐन्द्रजालिकों का उल्लेख हुआ है । जातककथा में मनोरंजन के लिए सांप का खेल दिखाकर आजीविका अर्जित करने वाले सपेरों का उल्लेख हुआ मानव सदा से उत्सव प्रिय रहा है । आचारांग से ज्ञात होता है कि उत्सव के अवसर पर स्त्री, पुरुष, बालक, वृद्ध, युवा सभी आभूषणों से विभूषित होकर नाचते, गाते, बजाते, भोजन-पान करते आनन्दमग्न हो जाते थे ।' उत्तराध्ययनचूर्ण में हर्षोल्लास के साथ मनाये गये वसन्तोत्सव, १. आचारांग, २/२/१/१६४, बृहत्कल्पभाष्य, भाग ५, गाथा १६७५ २. ज्ञाताधर्मकथांग, १/७६, कल्पसूत्र, सूत्र ९८ ३. खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख, पंक्ति ४; नारायण ए० के० : प्राचीन भारतीय अभिलेख संग्रह २, पृ०७३ ४. औपपातिक सूत्र २; राजप्रश्नीय सूत्र २ ५. " बहिय गामस्य इंदजालिय" - संघदासगणि, वसुदेवहिण्डी, भाग १ पृ० १९५ ६. दशवैकालिकचूणि, पृ० ३२१ ७. चम्पेय्यजातक आनन्द कौसल्यायन, जातककथा ५ / ४५ ८. आचारांग, २ /१२/१७१ १३

Loading...

Page Navigation
1 ... 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226