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अष्टम अध्याय : १९७
करते थे । विपाकसूत्र से ज्ञात होता है कि वैद्य परम्परागत पंचकर्मों- अभ्यं(मालिश), उद्वर्तन ( उवटन ), स्नेहपान, वमन, स्वेदन आदि से रोग का उपचार कर " रोगी" को रोग मुक्त कर देते थे । ' विपाकसत्र से ही ज्ञात होता है कि कनक राजा का वैद्य धनवन्तरि आयुर्वेद के आठ अंग कुमारभृत्य, शालाक्य, शाल्यहत्य, कायचिकित्सा, जांगुल, भूतविद्या, रसायण और वाजीकरण का ज्ञाता था वह राजा, रानियों, राज्याधिकारियों, दासियों, श्रमणों, भिक्षुओं और अनाथों की चिकित्सा करता था ।
व्यवहारभाष्य से ज्ञात होता है कि युद्ध के समय वैद्य प्राथमिकचिकित्सा के लिये व्रणसंरोहक तैल, घृत, चूर्ण आदि साथ रखते थे और आवश्यकता पड़ने पर घायल योद्धाओं के शरीर में घुसे अस्त्र-शस्त्र को शल्यक्रिया द्वारा निकालकर उनके घावों की औषध - पट्टी करते थे ।
इस प्रकार प्राचीन जैन साहित्य में प्रतिबिम्बित भारतीयों के खान-पान, रहन-सहन, आमोद-प्रमोद, पठन-पाठन, स्वास्थ्य और चिकित्सा के उपरिलिखित विवेचन से तत्कालीन समाज की बहुपक्षीय आर्थिक स्थिति की झलक मिलती है ।
१. विपाकसूत्र, २/५५,
२. कुमारभिच्चं, सालागे, सल्लहत्ते, कायतिगिच्छा, जंगोले, भूयविज्जा, रसायणे वाजीकरणे-विपाकसूत्र, ७/१५,१६
३. व्यवहारभाष्य, ५/१०३