Book Title: Prachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Author(s): Kamal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyashram Shodh Samsthan

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Page 197
________________ १८४ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन शातकर्णि के नासिक गुहा अभिलेख से ज्ञात होता है कि उसने धर्मसंघों को भूमि दान में दी थी।' गुप्तकाल के शिलालेखों में भी राजाओं द्वारा धर्मार्थ संघों को भूमिदान देने का उल्लेख है। नासिक गुहा लेख के अनुसार उषवदात ने गोवर्धन की श्रेणियों में ३००० कार्षापण जमा कराये थे जिससे उसके ब्याज से भिक्षुओं को भोजन-वस्त्र प्राप्त होता रहे । अन्तकृतदशांग के उल्लेख से ज्ञात होता है कि कभी-कभी जिन परिवारों के भरण-पोषण करने वाले मुख्य सदस्य की मृत्यु हो जाती थी, तो राज्य उन परिवारों के निर्वाह का दायित्व वहन करता था जैसे वासुदेव कृष्ण ने यह घोषणा की थी कि जो युवराज, तलवर, मांडविक, कौटुम्बिक, इभ्योष्ठि, दीक्षा लेंगे उनके परिवार के बालक, वृद्ध, रोगी का भरणपोषण राज्य करेगा। कौटिल्य ने भी राजा को बालक, वृद्ध, रोगी विपत्तिग्रस्त एवं अनाथ लोगों के भरण-पोषण का निर्देश दिया है।" हाथीगुम्फा लेख के अनुसार कलिङ्ग नरेश खारवेल ने कल्याणकारी कार्यों के लिये प्रभूत धन व्यय किया था। राजा, प्रजा के मनोरंजन के लिये संगीत का आयोजन करवाता था ।६ श्रेणिक ने पुत्र-जन्मोत्सव पर नगर में गायन, वादन और नृत्य का दस दिन तक चलने वाला आयोजन करवाया था। उक्त संदर्भो से प्रतीत होता है कि राज्य की आय का बहुत बड़ा भाग जनकल्याण पर व्यय किया जाता था। इस प्रकार राज्य की आय तथा व्यय के उपरिलिखित विवेचन से भाष्यकाल तथा चर्णिकाल में राजस्व की उन्नत व्यवस्था का चित्र प्रस्तुत होता है। १. गौतमीपुत्र शातकणि का नासिक गुहा अभिलेख पंक्ति ४ ; नारायण, ए०के० प्राचीन भारतीय अभिलेख संग्रह २, पृ० ६ २. बैन्यगुप्त का गुणेघर ताम्रपत्र अभिलेख, पंक्ति ४,९ ; वही, भाग२, पृ०१६३ ३. नहपानकालीन नासिक गुहा लेख पंक्ति २-३ वही, भाग २, पृ०३३ ४. अन्तकृत्दशांग ५/१/७ ५. खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख पंक्ति १४-१६ ; नारायण, ए०के० : प्राचीन भारतीय अभिलेख संग्रह, २, पृ० ७३ ६. ज्ञाताधर्मकथांग १/८१ ७. कौटिलीय अर्थशास्त्र, २/१/१९

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