Book Title: Prachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Author(s): Kamal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyashram Shodh Samsthan

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Page 196
________________ सप्तम अध्याय : १८३ जन-कल्याण पर व्यय प्रजा-हित का ध्यान रखने वाला राजा ही उत्तम माना जाता था। सोमदेवसूरि के अनुसार जब राजा न्यायपूर्वक प्रजा पालन करता है तो समस्त दिशायें कामधेनु के समान प्रजा को अभिलषित वस्तु देने वाली हो जाती हैं। कौटिल्य ने राजा को व्यापार और कृषि की सुविधा के लिये जलमार्ग, स्थलमार्ग, पत्तन, बाँध आदि निर्मित करवाने का आदेश दिया था। मेगस्थनीज के अनुसार राज्याधिकारी सार्वजनिक कार्य जैसे सड़कों, बाँधों, नहरों आदि का निर्माण करवाते थे । प्रजा की सुविधा के लिये सभा-गृह, उपवन, जलशालायें आदि बनाई जाती थीं। अशोक के शिलालेखों से सूचित होता है कि उसने मनुष्यों और पशुओं के लिए चिकित्सालय, औषधालय तथा सड़कों के दोनों ओर छायादार फलवाले वृक्ष, कुएं तथा प्याऊँ की व्यवस्था करवाई थी। ओघनियुक्ति से ज्ञात होता है कि दैवीय विपदा जैसे दुर्भिक्ष, अनावृष्टि, अतिवष्टि और महामारी के समय प्रजा की सहायता की जाती थी। ऐसे समय में राज्य के सुरक्षित भण्डारों एवं कोष्ठागारों से प्रजा को अन्न वितरित किया जाता था और निर्धनों को राज्य की ओर से अन्न प्रदान किया जाता था।" निशीथचर्णि से ज्ञात होता है कि सम्राट अशोक के प्रपौत्र सम्प्रति ने नगर के चारों द्वारों पर दानशालायें खुलवाई थीं जहाँ निःशुल्क भोजन उपलब्ध था । राजप्रश्नीय से ज्ञात होता है कि राजा प्रदेशी जब केशीश्रमण का अनुयायी बन गया तो वह अपनी ७००० गांवों की आय का चौथाई भाग ब्राह्मण, भिक्षुओं को दान देने में व्यय करने लगा। गौतमीपुत्र १. सोमदेवसूरि, नोतिवाक्यामृतम् १७/४९ २. वाणिक्पथप्रचारान् वारिस्थलपथपण्य पत्तनानि च, कौटिलीय अर्थशास्त्र, ३. पुरी, बैजनाथ, इण्डिया एज डिस्क्राइब्ड बाई अर्ली ग्रीक राईटर्स, पृ० ६२ ४. अशोक गिरनार का द्वितीय शिलालेख पंक्ति ५-८, नारायण, ए० के० : प्राचीन भारतीय अभिलेख संग्रह १, पृ० ५ ५. ओघनियुक्ति , पृ० २८ ६. निशीथचूणि, भाग ४, गाथा ५७४७, ५७५६ ७. राजप्रश्नीयसूत्र ८३

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