Book Title: Prachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Author(s): Kamal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyashram Shodh Samsthan

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Page 194
________________ सप्तम अध्याय : १८१ चलता है कि उसने ११३५ सुवर्णमुद्रायें व्यय करके हस्ती, अश्व, रथ और पैदल सेना का संगठन किया था।' न्याय-व्यवस्था और सुरक्षा पर व्यय देश में शान्ति एवं सुरक्षा की स्थापना हेतु न्याय की समुचित व्यवस्था थी। राज्य की सुरक्षा के लिये कई राज्याधिकारी नियुक्त किये जाते थे । ग्राम-रक्षा अधिकारी "सिरोरक्ष" नगर-रक्षा अधिकारी "कोटपाल", निगम का रक्षा करने वाला “श्रेष्ठी' और देश-विदेश में रक्षा करने वाले को “सिरोरक्ष' कहा जाता था । ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख है कि जब धान्य नामक सार्थवाह का पुत्र खो गया था तो उसने नगर-रक्षकों को सूचित कर सहायता की प्रार्थना की थी। इसी प्रकार एक और सार्थवाह ने चिलातचोर को पकड़ने में राज्य के सुरक्षाधिकारियों को सहायता प्राप्त की थी। बृहत्कल्पभाष्य से ज्ञात होता है कि राज्य का कारणिक नामक राज्याधिकारी न्यायालय में वादों-प्रतिवादों के आधार पर अभियोगों का निर्णय करता था ।६ आवश्यकणि में भी न्याय करने वाले राज्याधिकारियों का उल्लेख हुआ है। बृहत्कल्पभाष्य के अनुसार चोरी और लड़ाई-जगड़े के अभियोग राजकुल में जाते थे। कौटिलीय अर्थशास्त्र के अनुसार निष्पक्ष न्याय करना एवं अपराधी को दण्ड देना राजा का प्रमुख कर्तव्य था । वसुदेवहिण्डो में उल्लेख है कि पोतनपुर के व्यापारी धरण और रेवती में विवाद हो गया अन्ततः राजा से निवेदन किया गया। राजा ने कारणिक को न्याय करने की आज्ञा दी। इसी प्रकार धन का व्यवहार करने वालों के विवाद भी १. खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख पंक्ति ४; नारायण, ए० के० : प्राचीन भारतीय अभिलेख संग्रह, द्वितीय भाग, पृ० ७३ २. स्थानांग ७/६६ ३. निशीथचूणि भाग २ गाथा १५६८ ४. ज्ञाताधर्मकथांग २/३१ ५. वही, १८/३९ ६. बृहत्कल्पभाष्य, भाग ३, गाथा २२८१ ७. आवश्यकचूणि भाग २, पृ० १८१ ८. बृहत्कल्पभाष्य भाग ३, गाथा २६५५, २८०३ ; व्यवहारभाष्य ७/४४३ ९. कौटिलीय अर्थशास्त्र, ३/१/५८ १०. वसुदेवहिण्डी भाग १, पृष्ठ २९५

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