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१५२ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन भृत्ति दी जाती थी। पिंडनियुक्ति में एक कृषक द्वारा अपने श्रमिकों को हल चलाने के बाद उनकी योग्यतानुसार भोजन देने का उल्लेख है।' व्यवहारभाष्य के अनुसार एक कुटुम्बी कृषकों की सहायता से जो धान्य उगाता था उसे बाद में कृषकों में विभक्त कर देता था और जो बचता था उसे कोष्ठागार में सुरक्षित रख देता था। ब्रहत्कल्पभाष्य में उल्लेख है कि गाय, भैंस आदि का पालन करने वाले ग्वाले प्रतिदिन अपनी भृत्ति ले लेते या फिर चौथे दिन पूरा दूध ले लेते थे। पिडनियुक्ति से ज्ञात होता है कि जिनदास श्रावक का गोपालक आठवें दिन सब गायों का दूध भृत्ति-स्वरूप ले लेता था। मनुस्मृति में १० गायों का पालन करने वाले को एक गाय का दूध भृत्ति स्वरूप देने का निर्देश दिया गया था। बृहत्कल्पभाष्य में माली और पुष्प चुनने वाले को भी खाने पीने की वस्तुओं के रूप में पारिश्रमिक दिये जाने का उल्लेख है। वसुदेवहिण्डी से ज्ञात होता है कि धन्ना सार्थवाह ने अपने दास समुद्रदत्त के कार्य से प्रसन्न होकर उसे वस्त्र-युगल दिया और उसकी नौकरी स्थायी कर दी।
जो व्यक्ति श्रमिकों को पर्याप्त भत्ति नहीं देता था उसे हेय माना जाता था। व्यवहारभाष्य में एक ऐसे अमात्य का उल्लेख है जो राजा की आज्ञा से एक भवन निर्मित करवा रहा था, वह धन के लोभ से श्रमिकों को पूरी भृत्ति नहीं देता था, निष्ठुर वचनों से उनको अपमानित करता था, उनसे अनुचित और कठोर काम करवाता था उनको विश्राम का समय भी नहीं देता था। उन्हें लवण व मसालों से रहित सूखा भोजन भी समय-कुसमय पर ही देता था। इससे दुःखी होकर श्रमिक भवन को अपूर्ण छोड़कर चले गये । जब राजा को यह ज्ञात हुआ तो उसने अमात्य
१. पिंडनियुक्ति गाथा ३८४ २. 'कौटुम्बिकः सकर्षकाणां कारणे समुत्पन्ने वृद्धया कालान्तर धान्यं ददाति'
व्यवहारभाष्य, ६/१६३ ३. 'एगो गोवो पयोविभागेन गावो रखति सो य खारियाणं गावीणं चउत्थ खीरस्स गेण्हति'
निशीथचूणि, भाग ३, गाथा ४५०२ ४. पिंडनियुक्ति गाथा ३६९ ५. मनुस्मृति ८/२३१ ६. बृहत्कल्पभाष्य भाग ४, गाथा ३६५१ ७. संघदासगणि-वसुदेवहिण्डी १/५०