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षष्ठ अध्याय : १५१
कहा जाता था। कुछ श्रमिक, जो ठेके पर काम करते थे, उनको 'कवलभयगो' कहा जाता था।' __ श्रमिकों को पारिश्रमिक मात्र नकद, मात्र भोजन तथा नकद और भोजन तीन रूपों में दिया जाता था। पिंडनियुक्ति में उल्लेख है कि दास-दासियों या पशुओं से जो कार्य लिया जाता था उसका पारिश्रमिक सोना, चाँदी और ताँबा आदि धातुओं में प्रदान किया जाता था। इस प्रकार अनुमानतः पारिश्रमिक उक्त धातु के सिक्कों में दी जाती होगी। नकद वेतन के साथ भोजन देने के उल्लेख भी मिलते हैं। ज्ञाताधर्मकथांग से ज्ञात होता है कि राजगिरि के नन्दमणिकार ने अपनी पुष्करिणी पर लोक कल्याण हेतु औषधालय, अनाथालय और भोजनालय खोले थे, जहाँ उसने नकद वेतन और भोजन पर कर्मचारी नियुक्त किये थे। विपाकसूत्र से ज्ञात होता है कि धान्नक कसाई ने पशुपालन, उनका वध करने और उनका माँस बाजारों में बेचने हेतु नकद वेतन और भोजन पर सैकड़ों अनुचर नियुक्त किये थे। सकडालपुत्र कुम्हार ने भी बर्तन की अपनी ५०० दुकानों पर नकद वेतन और भोजन देकर कर्मचारी नियुक्त किये थे । बृहत्कल्पभाष्य से ज्ञात होता है कि वैद्य अपना पारिश्रमिक वस्त्र, भोजन, शयन, आसन और 'केवडिय' नामक सिक्कों में प्राप्त करते थे।' अन्न और भोजन के रूप में भी
१. भयगो चउन्विहो-दिवसभयगो जत्ताभयगो कव्वाल भयगो उच्चत्तय
भयगो य ।""काले छिगो सव्वदिणं घणं पच्छिण्णं रूवगैहिं तुमे मम कम्म कायव्वं । एवं दिणे-दिणे भवगो घेप्पति ।...""इमो जत्ताभयगो = दस जोयणागि मम सहारण एगागिणा वा गंतव्वं एत्तिएण घणेण, तितो परं ते इच्छा ।......"इमो कव्वालभयगो-कव्वालो खितिखाणतो उड्डमादी, तस्स कम्मप्पिणिज्जति, दो तिण्णि वा हत्था छिन्नं अछिन्नं वा एत्तियं ते घणं दाहामि त्ति ।....."इमो उच्चत्त भयगो-तुमे ममं एच्चिरं कालं कम्म कायव्वं जं जं अहं भणामि, एत्तियं ते घणं दाहामि त्ति ।
निशीथचूणि, भाग ३/३७१८, गाथा ३७६९/३७२९ २. पिंडनियुक्ति, गाथा ४०५ ३. ज्ञाताधर्मकथांग १३/२०-२३ ४. विपाकसूत्र ४/१६ ५. उपासकदशांग ७/७ ६. बृहत्कल्पभाष्य, भाग २, गाथा १९६८ से १९७०