Book Title: Prachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Author(s): Kamal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyashram Shodh Samsthan

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Page 169
________________ १५६ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन में उल्लिखित है कि दशपुर की रेशम बुनने वाली श्रेणी ने सूर्य मन्दिर का निर्माण करवाया था। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि श्रमिकों के संगठन अपनी पूजी और श्रम का उचित उपयोग करते थे। ३-ब्याज राष्ट्रीय आय का वह अंश जो पूजी के बदले में स्वामी को दिया जाता है ब्याज कहलाता है। निशीथणि में उसे वृद्धि कहा गया है। उपासकदशांग से ज्ञात होता है कि पूजी पर ब्याज लेने की प्रथा प्रचलित थी। उपासकदशांग में वर्णित, समाज में प्रतिष्ठित, दसों गाथापति अपनी पूजी ब्याज पर देते थे। बड़े-बड़े सार्थवाह भी ऋण देने का कार्य करते थे। सम्पन्न गाथापतियों और सार्थवाहों के अतिरिक्त व्यापारियों के निगम", श्रमिकों की श्रेणियाँ भी ब्याज पर पूजी देती थीं। पाणिनि ने प्रजी देने वाले को 'वस्निक' कहा है। प्रश्नव्याकरण से ज्ञात होता है कि ऋण लिखा-पढ़ी करके दिया जाता था, कुछ धोखेबाज लोग झूठे कागज-पत्र भी तैयार करते थे। ऋण साक्षी को उपस्थिति में दिया जाता था। जैन ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि कई बार लोग धन प्राप्त करने के लोभ में झूठी गवाही भी देते थे। ऋण प्राप्त करने का अधिकार उसी व्यक्ति को था जिसके पास भवन या भूमि हो या वह ऋणदाता का भलीभाँति परिचित हो ।१० ___ ब्याज की दर प्रायः इतनी ऊँची होती थी कि एक बार ऋण लेने १. ए० के० नारायण-प्राचीन भारतीय अभिलेख संग्रह २, पृ १२६ २. निशीथचूर्णि भाग ३, गाथा ४४८८ ३. उपासकदशांग १/१२, २/४, ३/४, ४/४, ४/४ ४. ज्ञाताधर्मकथांग २/७ ५. बृहत्कल्पभाष्य भाग २, गाथा १११० ६. नहपानकालीन नासिक गुहालेख पंक्ति २, ३ ए० के० नारायण-प्राचीन भारतीय अभिलेख संग्रह २, प० ३३ ७. पाणिनि अष्टाध्यायी ५/१/१५६ ८. प्रश्नव्याकरण, २/१० ९. वही १०. सोमदेवसूरि-नोतिवाक्यामृतम् ७/४०

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