Book Title: Prachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Author(s): Kamal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyashram Shodh Samsthan

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Page 186
________________ सप्तम अध्याय : १७३. "भार" का भाड़ा चौथाई पण था। ये दरें छोटी नदियों के लिये थीं। बड़ी नदियों को पार करने की दरें इसकी लगभग दोगुनी थीं। ब्राह्मण, संन्यासी, बालक, वृद्ध, रोगी, हरकारा, गर्भिणी स्त्री, नौकाध्यक्ष की मुद्रा दिखाकर निःशुल्क नदी पार कर सकते थे ।' बृहत्कल्पभाष्य से ज्ञात होता है कि एक राज्य से दूसरे राज्य में जाते हुये व्यापारियों को और यात्रियों को निर्धारित कर देकर पार-पत्र लेना आवश्यक था। कौटिलीय अर्थशास्त्र में भी राज्य-सीमा पार करने के लिये १ माषक कर देकर पारपत्र प्राप्त करने का उल्लेख है ।। निःस्वामिक धन-जिस संपत्ति के स्वामी का कोई उत्तराधिकारी नहीं होता था उसकी सम्पत्ति का राज्य अधिग्रहण कर लेता था । उत्तराध्ययन से ज्ञात होता है कि भृगुपुरोहित ने जब पत्नी और पुत्रों के साथ दीक्षा ग्रहण कर ली तब राजा ने उसकी विपुल संपत्ति राजकोश में जमा करने का आदेश दे दिया। जातककथाओं में भी पुरोहित के अपनी पत्नी और पूत्रों के साथ दीक्षित हो जाने पर राज्य द्वारा उसकी सम्पत्ति के अधिग्रहण करने का उल्लेख है।" व्यवहारभाष्य के एक प्रसंग के अनुसार राजा ने एक निःसन्तान वणिक की मृत्यु हो जाने पर भी उसकी गर्भवती विधवा पत्नी के हित में उसकी संपत्ति अधिकृत करने की अनुमति नहीं दी। ताकि मृतवणिक् की पत्नी का पुत्र उत्पन्न होने पर स्वतः ही उस शिशु को सम्पत्ति का अधिकार मिल सके। कौटिलीय अर्थशास्त्र में इस प्रकार के धन को अपुत्रक धन कहा गया है।" १. क्षुद्रपशुमनुष्यश्चसभारो माषकं दद्यात्, शिरोभारः कायभारो गवाश्वं च द्वौ, उष्ट्रमहिषं चतुरः पञ्चलघुयानम्, सप्तशकटं पण्यभारः पादम्' कौटिलीय अर्थशास्त्र २।२४।४३ २. रायमातिणो य एते मुद्दापट्टयदूतपुरिसंवा मग्गिज्जंति निशीथचूणि, भाग ३, गाथा ३३८६ ३. मुद्राध्यक्षो मुद्रा माषकेण दद्यात्, कौटिलीय अर्थशास्त्र, २/३४/५२ ४. उत्तराध्ययन १४/३७ ५. हत्थिपाल जातक, आनन्द कौसल्यायन, जातककथा ५/७४. ६. व्यवहारभाष्य, ७/४१८ ७. कौटिलीय अर्थशास्त्र, २।६।२४

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