Book Title: Prachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Author(s): Kamal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyashram Shodh Samsthan

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Page 187
________________ १७४ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णात आर्थिक जीवन गृहकर - नगरों तथा ग्रामों में प्रत्येक गृह से गृहकर लिया जाता था | पिंsनियुक्ति से ज्ञात होता है कि प्रत्येक गृह से दो द्रम गृहकर लिया जाता था ।' अनुमानतः बड़े आवासगृहों और भवनों पर अधिक कर तथा छोटे गृहों पर उससे कम कर निर्धारित थे और उनसे भी छोटे आवासगृह कर-मुक्त रहे होंगे क्योंकि बृहत्कल्पभाष्य में उल्लेख है कि राजगिरि के समृद्ध व्यक्ति ने एक भव्य भवन निर्मित कराया था लेकिन बाद में उसके निर्धन हो जाने पर उसके पुत्रों के पास इतना भी धन नहीं था कि वे उसका कर दे सकें । विवशतः उन्होंने वह भवन श्रमणों के निवास हेतु दान दे दिया और स्वयं उसके पास झोपड़ी निर्मित कर रहने लगे । २ उपहार और भेंट - उपहार और भेंट में प्राप्त धन भी राज्य की आय का स्रोत होता था । राजा के राज्याभिषेक, पुत्रोत्पत्ति तथा विशेष उत्सवों के अवसर पर प्रजा तथा अधीनस्थ सामन्त राजा को भेंट देते थे । ३‍ ज्ञाताधर्मकथांग से ज्ञात होता है कि थावच्चा नामक सार्थवाही अपने पुत्र के दीक्षोत्सव की अनुमति लेने उपहार सहित राजा के पास गई थी । दूसरे देश के व्यापारी भी व्यापार आरम्भ करने से पूर्व राजा को भेंट आदि देकर प्रसन्न करते थे । राजगिरि के नंदमणिकार ने राजगिरि में पुष्करिणी निर्मित करने की अनुमति हेतु राजा श्रेणिक को भेंट और उपहार दिये थे । कौटिलीय अर्थशास्त्र में उपहार और भेंट स्वरूप प्राप्त धन को 'बलि' और 'उत्संग' कहा गया है । " विजित राजाओं से प्राप्त धन - युद्ध में पराजित राजाओं के धन से भी राजकोष में वृद्धि होती थी । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति से ज्ञात होता है कि भरत चक्रवर्ती को यवन तथा अरब आदि पराजित विदेशी और देशी राजाओं ने हार, मुकुट, कुण्डल आदि आभूषण और रत्न भेंट किये थे । ' पउमचरियं में उल्लेख है कि म्लेच्छ शासक से पराजित और बन्दी राजा की पुत्री राजकुमारी कल्याणमालिनी, पिता के सिंहासन और राज्य की १. पिंड नियुक्ति गाथा, ४७ २. बृहत्कल्पभाष्य, भाग ४, गाथा ४७७० ३. ज्ञाताधर्मकथांग १/८१, महत्यं महध्धं महरिहं रारिहं पाहुडं उवणोइ. ४. वही, ५/२०, ८/८१ और १३/५ ५, कौटिलीय अर्थशास्त्र, २/१५ / ३३ ६. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, २ /१३, ३/१८

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