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पंचम अध्याय : १३९
हूँ। रास्ते में उसने धोखे से उन सबको भोजन में विष खिलाकर मार डाला और उनका धन लूट लिया ।'
उत्तराध्ययनणि से ज्ञात होता है कि अचल व्यापारी ने गणिका को ८०० दीनारें प्रदान की थीं।२ आवश्यकचूर्णि के अनुसार एक राजा ने एक कार्याटिक को दक्षिणा में एक युगलवस्त्र और दीनार भेंट किया था । इसी प्रकार एक वणिक् ने एक गरीब से शर्त लगाई थी कि माघ के महीने में जो सारो रात पानी में बैठेगा उसे एक हजार दीनार प्राप्त होगा। दशवकालिकणि से ज्ञात होता है कि किसी राजा ने साँप मारने के लिए पारितोषिक के रूप में एक दीनार प्रदान करना नियत किया था।५ बृहत्कल्पभाष्य के अनुसार पूर्व देश में एक और सिक्का प्रचलित था जिसे 'केवडिक' कहा जाता था। इसकी धातु का स्पष्ट उल्लेख नहीं हुआ है पर स्वर्ण सिक्कों के साथ ही उल्लेख होने से सम्भवतः यह भी स्वर्ण सिक्का ही हो । इसी सिक्के को अन्यत्र 'केतरात' कहा जाता था। निशीथचूर्णि में भी 'केवडिय' केवग का उल्लेख है। इस सिक्के का अन्य कहीं उल्लेख नहीं मिलता, अतः यह किसी प्रांत-विशेष का सिक्का रहा होगा। ___ सोने के छोटे सिक्के को 'सुवणं माष' कहा जाता था । उत्तराध्ययन में उल्लेख है कि श्रावस्ती का एक सेठ प्रतिदिन दो सुवर्णमाषक उस भिखारी को देता था जो उसके द्वार पर सर्वप्रथम पहुँचता था । इसी प्रकार निशीथचूर्णि से भी ज्ञात होता है कि एक राजा ने प्रसन्न होकर अपने
१. संघदासगणि--वसुदेवहिण्डी, भाग १, पृ० ४३ २. अट्ठसयं दिणारायण तीए भाडि नितित्त दिन्नं-उत्तराध्ययनचूणि ४/११९ ३. आवश्यकचूणि भाग २, पृ० १६७ ४. वही १/५२३ ५. दशवैकालिकचूर्णि, पृ० ४२ ६. कवड्डगमादी पंच, रुप्पे पीते तदेव केवडिए ।
बृहत्कल्पभाष्य भाग २, गाथा १९६९. 'पोय', त्ति सुवन्नं, जहा पुन्वदेसे दोणारो । केवडिओ यथा तत्रैव केतराता
___निशीथचूणि भाग ३, गाथा ३०७०, ३०३७, ३७१४ ७. उत्तराध्ययन ८/१७; उत्तराध्ययनचूणि ८/१६९