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१३४ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन प्रयोग में लाये जाते थे, जिनमें कुंभ, तुम्ब, दत्ति, उडुप, पणि आदि थे। लकड़ी के चारों ओर घड़े बाँधकर तैरने के लिये बनाई गई नाव को 'कंभ'२, रस्सी के जाल में सूखे हए तुम्बे या अलाबु लगाकर बनाई गई नाव को "तुम्ब"३, चमड़े के थैले, भेड़, बकरी की खालों में हवा भर कर उन्हें एक दूसरे से बाँधकर तैयार की गई नाव को "दत्ति" कहा जाता था। पश्चिमी भारत में नदियों को पार करने का यह एक सुरक्षित साधन था। पाणिनि ने इसे "भस्त्रा" कहा है।" लकड़ियों को आपस में बाँध कर निर्मित नौका "उडुप' कही जाती थी। पाणिनि ने इस प्रकार की लट्ठों या बांस के मुट्ठों में बाँधकर निर्मित नौका को “भरड़ा" कहा है। “पण्णि" नामक लताओं से बनाये गये टोकरों की नौका को "पण्णि' कहा जाता था। व्यापारिक जलमार्ग
देश की नदियाँ प्रमुख व्यापारिक नगरों को परस्पर जोड़ती थीं। उत्तराध्ययन से ज्ञात होता है कि चम्पा से एक जलमार्ग पिहुड तक जाता था । पिहुंड पूर्वी तट पर कलिंगपत्तन के पास का एक जलपत्तन था। पोतवणिक् अरहन्नक के यात्रा-वृत्तान्त से ज्ञात होता है कि ताम्र
१. 'कुंभे, दतिए, तुम्बे, उडुपे, पण्णी य एमेव'
निशीथचूर्णि भाग १, गाथा १८५, भाग ३, गाथा ४२०९ २. 'चउकट्ठि काउं कोणे कोणे घडओ बज्झति, तत्थ अवलंबिउ आरुभिउं वा
संतरणं कज्जति' वही भाग १, गाथा १८५, भाग ३, गाणा ४२०९ ३. 'तुंबे त्ति मच्छियजालसरिसं जालं काऊण' अलाबुगाण भरिज्जति'
वही भाग १, गाथा १८५ ४. 'दत्तिए ति वायफुण्णो, दतितो तेण वा संतरणं कज्जति'
निशीथचूणि भाग १, गाथा १८५; भाग ३, गाथा ४२०९ ५. पाणिनि-अष्टाध्यायी ४/४/१६ ६. निशीथचूर्णि, भाग १, गाथा १८५, भाग ३, गाथा ४२०९ ७. पाणिनि-अष्टाध्यायी, ४/४/१६ ८. 'पण्णिमया महंता भारगा बज्झंति ते जमला दंधेउ ते य अवलंबिउ संत्तरणं कज्जति ।'
निशीथचूणि भाग १, गाथा १८५ ९. उत्तराध्ययन २१/२, ४