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९६ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन
वैदूर्य, रिस्ट एवं अंजन-रत्न खचित थे।' यूनानी विद्वानों के अनुसार भी सफेद चमड़े के जूतों पर सुन्दर कढ़ाई की जाती थी।
युद्ध में शरीर की रक्षा के लिये चमड़े के आवरण बनाये जाते थे। विविध वाद्य-मृदंग, झल्लरी, वितत, ढोल, तूनक, पखावज आदि के मुख चमड़े से मढ़े जाते थे।३ चमड़े से पानी भरने की मशकें और नदी पार करने के लिये चमड़े की दृति नामक छोटी सी नाव बनायी जाती थी। चमड़े से पाश और चाबुक बनाये जाते थे। चमड़ा प्राप्त करने के लिये नगरों के बाहर सूनागृह बनाये जाते थे, जहाँ पर पशुओं का वध करके चमड़ा तैयार किया जाता था। कौटिलीय अर्थशास्त्र में भी सूनागृहों का वर्णन है । सूनागृह के अधिकारी को सूनाध्यक्ष कहा जाता था। चमड़ा प्राप्त करने के लिये असंख्य प्राणियों का घात करना पड़ता था। इसलिये इस व्यवसाय को जैन-परम्परा में मान्यता नहीं दी गई है। ११-हाथी दाँत उद्योग
उपासकदशांग से हाथी दाँत के उद्योग के अस्तित्व का प्रमाण मिलता है। उपासकदशांग में वर्णित १५ कर्मदानों में छठां कर्मदान-"दन्तवाणिज्य" था। हिंसा के कारण श्रावक के लिये यह व्यवसाय निषिद्ध था। हाथी दांत के भवन बनाये जाते थे। उड़ीसा के दंतपुर के राजा द्वारा अपनी रानी हेतु निमित्त सम्पूर्ण प्रासाद ही हाथी दाँत का था। इसी प्रकार एक वणिक् ने अपनी पत्नी की दोहद पूर्ति हेतु हाथी दांत के भवन निर्माण हेतु भीलों से हाथी दाँत खरीदा था। रामायण में उल्लेख है कि कैकेयी का भवन हाथी दाँत की चौकियों तथा आसनों से युक्त था। इसी१. ( वारिट्ट-रिट्ठ-अंजग-निउगोविय-मिसिमिसंत गणि रयण मंडियाओ
पाडयाओ ओमपई। औपपातिक, पृष्ठ ११४ २. पुरी बैजनाथ, इण्डिया एज डिस्क्राइब्ड बाई ऐंशियंट ग्रीक राइटर्स,, __पृष्ठ ९० ३. आचारांग २, ११।१६८ ४. निशीथचूणि, भाग १ गाथा १८५ ५. निरयावालिका १।३० ६. कौटिलीय अर्थशास्त्र २।२६।४३ ७. उपासकदशांग ११५१ ८. निशीथचूर्णि, भाग ४ गाथा ६५७५; आवश्यकचूर्णि, भाग २ पृ० १७०