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१२० : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन
में पहँच गये थे। प्रश्नव्याकरण में उल्लेख है कि समद्री यात्राओं में जलदस्युओं का भी भय रहता था। वे काली-पीली सफेद झंडियों वाले, बड़ी पतवारों वाले, द्रुतगामी पोतों द्वारा आक्रमण करके व्यापारियों को लूट लेते थे। मालाबार तट पर आठवीं शताब्दी के पश्चात् पश्चिम के अरब व्यापारी दक्षिण के तटीय प्रदेशों में बस गये थे जो भारतीय जहाजों पर लूटमार करते रहते थे । आयात-निर्यात
आगमकाल में देशीय और अन्तर्देशीय व्यापार समान रूप से उन्नत थे । भारत में निर्मित वस्तुओं की विदेशों में अत्यधिक मांग थी। भारत से कुछ विशेष रत्न, वस्त्र, सुगन्धित वस्तुए, खिलौने, मसाले, गुड़ आदि का निर्यात होता था। विदेशों से सोना, चाँदी, रत्न, दास-दासी, अश्व और रेशमी वस्त्र का आयात होता था। भारत में रत्न-व्यापार बहुत होता था । “पारसकुल'' (ईरान) के व्यापारी यहाँ रत्न-क्रय करने आते थे । उत्तराध्ययनटीका से ज्ञात होता है कि एक बार एक वणिक् के पुत्रों ने विदेशी व्यापारी को अपने सारे रत्न बेच दिये । इसी प्रकार आवश्यकचूर्णि के अनुसार कोडीवरस (सिंहभूमि के पास कोई स्थान) के व्यापारी रत्न, मणि और मोती लेकर चिलात जाति के राजा के पास गये थे। ज्ञाताधर्मकथांग से ज्ञात होता है कि हस्तिशीर्ष के पोतवणिक चन्दन, खश, इलायची आदि अनेक सुगन्धित पदार्थ, विविध वाद्ययंत्र, खांड, गुड़, मिश्री सूती तथा ऊनी वस्त्र और खिलौने लेकर कलिकाद्वीप गये थे।" वसुदेवहिण्डो से सूचना मिलती है कि चम्पा का श्रेष्ठी-पुत्र सात करोड़ धन अजित करने हेतु दक्षिण गया। वहां से जलयान में श्वेत चन्दन और वस्त्र भरकर यवनद्वीप (सिकन्दरिया) गया, जहाँ पहुँच कर उसने अपने माल बेचकर सात करोड़ से भी अधिक धन अजित किया।
१. ज्ञाताधर्मकथांग १७/११-१३ २. लवणसलिलपुण्णं असिय-सिय समूसियगेहिं हत्थंतरकेहिं वाहणेहिं अइवइत्ता समुद्दमज्झे हणंति गंतूण जणस्स पोते ।
प्रश्नव्याकरण ३/७ ३. उत्तराध्ययन टोका १८/२५२ ४. आवश्यकचूणि भाग २ पृ० २०३ ५. ज्ञाताधर्म कथांग १७/२२ ६. संघदासगणि-वसुदेवहिण्डी भाग पृ० १/४०