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पंचम अध्याय : १२७ दूसरे स्थान तक आने जाने के लिये नदी, नाले अथवा समुद्र के किनारों का अनुसरण करते थे, जिससे जल, कन्दमूल, फल आदि भी प्राप्त हो जाते थे।
व्यापारिक मार्गों में चोरों और डाकुओं का आतंक रहता था। अतएव यात्रियों की सुरक्षा के लिये राज्य की ओर से 'गौल्मिक' संज्ञक राजपुरुष नियुक्त किये जाते थे। कभी-कभी मार्गों की रक्षा हेतु नियुक्त राज्याधिकारी साधुओं को भी चोर समझकर पकड़ लेते थे। एक राज्य से दूसरे राज्य में प्रवेश करने के लिये आज्ञा-पत्र लेने पड़ते थे। विशेषरूप से रात में यात्रा करने वालों को अपना आज्ञा-पत्र दिखाना पड़ता था । आज्ञा-पत्ररहित पुरुष को चोर समझकर पकड़ लिया जाता था। सुरक्षा प्रदान करने के लिये जनपद मार्गों पर मार्ग कर 'वर्तनी' लिया जाता था।
स्थल-वाहन
__ स्थल मार्गों के लिये रथ, शकट, बैलगाड़ो, हाथी, घोड़ा, ऊँट आदि वाहन होते थे। उपासकदशांग से ज्ञात होता है कि गाथापति आनन्द के पास माल और सवारी ढोने के लिये पाँच-पाँच सौ शकट थे।' व्यवहारभाष्य में प्राप्त विवरण के अनुसार एक राज्याधिकारी ने राजकुल के कार्य हेतु एक गाड़ी तय किया था, जिसका गाड़ीवान वस्तुओं को निश्चित समय पर सुरक्षित रूप में पहुँचाता था । राजा ने प्रसन्न होकर
१. बृहत्कल्पभाष्य, भाग ३ गाथा २७७५, २९२६ २. वही, भाग ३, गाथा २९२६ ३. वही, भाग ३, गाथा २७८७
'मुद्रा पट्टकं दूतपुरुषं वा मार्गयितव्याः ' ४. वही, भाग ३, २९२६, भाग १ गाथा १९५ ५. निरूत्तादी वत्तणी व जहा। वही, भाग १, गाथा १८९ ६. सूत्रकृतांग १/३/२/१९७ ७. पंचहिसगडसएहि दिसायत्तिएहिं पञ्चहि सगडसएहि संवाहणिएहिं
उपासकदशांग १/२०