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१३० : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन
वसुदेव हिण्डी से सूचना मिलती है कि कौशाम्बी से उज्जयिनी जाने वाला मागे बड़ा भयानक समझा जाता था, क्योंकि यह मार्ग घने जंगलों के मध्य होकर गुजरता था, जहाँ सर्प, शेर, बाघ, जंगली हाथियों और चोरों का आतंक था।' आवश्यकचूणि से ज्ञात होता है कि उज्जयिनी से चम्पा जाने वाला मार्ग भी निरापद नहीं था, क्योंकि इस मार्ग में घने जंगल थे और उनमें पुलिंदों का निवास था। ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख है कि एक स्थल मार्ग चम्पा से गम्भीरपत्तन ( ताम्रलिप्ति ) के समीप तक जाता था । अरहन्नक नामक प्रसिद्ध पोतवणिक् इसी मार्ग से गम्भीरपत्तन तक अपने गाड़ियों और शकटों के साथ पहुंचा था। वसुदेवहिण्डी से ज्ञात होता है कि स्थल मार्गों से यात्री चीन, तिब्बत, ईरान और अरब देशों तक जाते थे। चारुदत्त अपने मित्र रुद्रदत्त के साथ सिन्धु नदी के संगम से उत्तरपूर्व दिशा में हूण, खस और चीन देश गया था। जल-मार्ग ___ व्यापारिक दृष्टि से जलमार्गों का बहुत महत्त्व था । देश के बड़ेबड़े नगर जलमार्गों से संलग्न थे । गंगा, यमुना, सरयू, सिन्धु, इरावती, कोसी, मही तथा वेत्रा आदि नदियों का जलमार्गों के रूप में उपयोग होता था।" जलमार्गों से केवल देश के अन्दर ही नहीं अपितु विदेशों में भी यात्रा की जाती थी। नदी, नगर व्यापारिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण थे। उस युग में नदियों के तट पर स्थित नगर व्यापारिक
१. संघदासगणि-वसुदेवहिण्डी भाग १, पृ० ४२ २. आवश्यकचूणि भाग २, पृ० १५५ ३. ज्ञाताधर्मकथांग ८/८१ ४. कमेण उतिण्णा मो सिंधुसागरसंगम नदि वच्चामो उतरपुवं दिसं भयमाणा अतिच्छिया हूण-खस-चीण भूमिओ"
संघदासगणि-वसुदेवहिण्डी भाग १, पृ० १४८ हूण और खस को पहचान कामगिरि के दक्षिण और मेरु पर्वत के उत्तर से की गई है-स्टडीज इन दो ज्योग्राको ऑफ ऐंशियंट एण्ड मिडि वल
इण्डिया, पृष्ठ १० ५. 'तं जहा-गंगा जउणा सरऊ एरावई मही' निशीथसूत्र ४२; बृहत्कल्पभाष्य,
भाग ५, गाथा ५६१८; निशीथचूणि, भाग ३, गाथा ४२०८, ४२१०