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पंचम अध्याय : १२९
स्वतंत्र सवारी के अतिरिक्त रथों में भी जोता जाता था । उन्हें आभूषण और सुनहरी जीनों से सुसज्जित किया जाता था । '
व्यापारिक स्थल - मार्ग
देश के विभिन्न व्यापारिक केन्द्र स्थल मार्गों से हुये थे, जैसे पाटलिपुत्र उस समय देश के विभिन्न जुड़ा हुआ था । पाटलिपुत्र से काबुल, कन्धार जाने वाले पथ कहा जाता था । पाटलिपुत्र के मुरुण्ड राजा का दूत इसी मार्ग से पुरुषपुर (पेशावर ) गया था । मिथिला के यात्री भी पुरुषपुर तक जाते थे । कुवलयमालाकहा में उल्लेख है कि तक्षशिला का वणिक्पुत्र धनदेव उत्तरापथ से होता हुआ दक्षिणापथ की सोपारक मंडी पहुँचा था । ४
एक दूसरे से जुड़े व्यापारिक मार्गों से मार्ग को उत्तरा
पाणिनि ने उत्तरापथ को स्थल यातायात की धमनी कहा है । इस मार्ग पर पाटलिपुत्र, वाराणसी, कौशाम्बी, साकेत, मथुरा, तक्षशिला, पुष्कलावती और कपिशा आदि स्थित थे और यही मार्ग आगे वालीक तक जाता था । " चीनी यात्री फाह्यान इसी मार्ग से पाटलिपुत्र पहुँचा था । ज्ञाताधर्मकथांग से ज्ञात होता है कि एक मार्ग चम्पा से अहिच्छत्र तक जाता था । इसी मार्ग से चम्पा का सार्थवाह धन्ना व्यापार के लिये गया था । आवश्यकचूर्णि से ज्ञात होता है कि एक मार्ग राजस्थान के मध्य से होकर सिन्धु देश पर्यन्त जाता था । मरुस्थल होने के कारण इस मार्ग पर जल का मिलना कठिन था । एक सार्थ के यात्री तो जल के अभाव में मृत्यु को प्राप्त हो गये थे ।
१. औपपातिक सूत्र ४९
२. "पालि मुडदूते पुरिसपुरे सचिवमेलणाऽऽवासो" बृहत्कल्पभाष्य, भाग ३,
गाथा २२९२
३. वसुदेवहिण्डी भाग २, पृ० २०९
४. उद्योतनसूरि- कुवलयमालाकहा १०५
५. पाणिनि-अष्टाध्यायी ५ /१/७७
६. घोष, नरेन्द्र नाथ - एन अर्ली हिस्ट्री आफ इण्डिया, पृष्ठ २५९
७. ज्ञाताधर्मकथांग १५ / ३-६
८. आवश्यकचूर्णि भाग २, पृ० ५२३
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