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पंचम अध्याय : १२१
ज्ञाताधर्मकथांग से ज्ञात होता है कि श्रेणिक के अन्तःपुर में विदेशी दासियाँ थीं।' जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में यवनद्वीप से दास-दासी मंगाये जाने का उल्लेख है । यहाँ यवन, बब्बर, वाहलीक, पारस, सिंहल, अरब आदि विविध देशों की दासियाँ थीं। इससे प्रकट होता है कि प्राचीनकाल में प्रथम-द्वितीय शताब्दी में विदेशों से दास-दासी मंगाये जाते थे। ___ भारतीय नरेश विदेशों से बलिष्ठ और सुन्दर घोड़ों का आयात करते थे । ज्ञाताधर्मकथांग से ज्ञात होता है कि भारतीय व्यापारी मिथिला के राजा कनकेतु के अनुरोध पर कलिकाद्वीप से धारीदार घोडे लाये थे । उत्तराध्ययन में अरब और कम्बोज से अकीर्ण और कन्थक जाति के घोड़े भारत में लाये जाते थे। इसी प्रकार राजप्रश्नीय से भी विदित होता है कि श्वेताम्बिका नगरी के राजा प्रदेशी को कम्बोज के घोड़े उपहार स्वरूप प्राप्त हुए थे ।" उत्तरापथ के घोड़ों का व्यापार बड़े उत्कर्ष पर था । सीमाप्रान्त के व्यापारी घोड़ों के साथ देश के कोने-कोने में जाते थे । आवश्यकचूणि से ज्ञात होता है कि उत्तरापथ का एक घोड़े का व्यापारी द्वारका गया था, वहाँ राजकुमारों ने उपसे घोड़े खरीदे थे ।
कुवलयमालाकहा में उल्लेख है कि एक व्यापारी सुपारो लेकर उत्तरापथ गया था वहाँ से वह घोड़े लेकर आया था। कुण्डकुच्छि जातक से भी पता चलता है कि उत्तरापथ के अश्व व्यापारी बनारस आकर अपने अश्व बेचते थे। इसी प्रकार कालिदास के रघुवंश से भी ज्ञात होता है कि कम्बोज देश के राजाओं ने बहुत से उत्तम घोड़े महाराज रघु को भेट किये थे । उत्तराध्ययनटीका के विवरणानुसार पारसकुल (ईरान) के
१. ज्ञाताधर्मकथांग १/८२ २. राजप्रश्नीय १६२ ३. ज्ञाताधर्मकथांग १७/२२ ४. उत्तराध्ययन १३/५८ ५. राजप्रश्नीय १२४ ६. आवश्यकचूणि भाग पृ. ४१८ ७. उत्तरावहं पूयफलाइयं भंडं घेत्तूणं तत्थ लद्ध-लाभो तुरंगमे घेत्तूणं ।
कुवलयमालाकहा पृष्ठ ६५ ८. कुण्डकुच्छि जातक, आनन्द कौसल्यायन जातककथा ३/१६