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'१०८ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन
अंगुलियों के संकेत से करते थे। ताकि समीप बैठे हुए अन्य व्यापारियों को मूल्य ज्ञात न हो सके। उत्तरापथ को ढक्क जाति के लोग सोना, चाँदी, हाथीदाँत आदि लेकर व्यापार के लिये दक्षिणापथ जाते थे। वहाँ दक्षिणवासियों की भाषा न समझते हये हाथ के संकेतों से मोल-तोल करते थे।
व्यापारी झूठे तौल और मापों से ग्राहकों को छलते थे। झूठे तौलमाप को रोकने के लिये राज्य भी सतर्क, सावधान रहता था। उपासकदशांग में कट माप-तौल करने वाले व्यापारियों को दोषी माना गया है। भगवतीसत्र में कहा गया है कि कूटमाप-तौल करने वाले नरक में जाते हैं। सोमदेव के अनुसार जिस राज्य में वणिक् लोग तराज और बाँटों में धोखा करते हैं वहाँ का व्यापार नष्ट हो जाता है। इसलिये राजा को इसे रोकना चाहिये ।५ सामाजिक तौर पर इस बुराई को कम करने का प्रयत्न किया जाता था, उपासकदशांग से लेकर परवर्ती श्रावकाचार के जैन ग्रन्थों में कट माप-तौल, वस्तुओं में मिलावट करना और नमूने के अनुसार वस्तु न देना अस्तेयव्रत के अतिचार (दोष) माने जाते थे। जैन श्रावकों को इनसे बचने का उपदेश दिया जाता था ।६।। ___ कौटिलीय अर्थशास्त्र भी स्पष्ट निर्देश देता है कि व्यापारी मिलावट और कम माप-तौल न करें, इसके लिये विशेष ध्यान रखना चाहिये। राज्य की ओर से एक अधिकारी पौतवाध्यक्ष नियुक्त किया जाता था जो इस प्रकार का अपराध करने वाले व्यापारियों को दण्ड देता था। मनुस्मृति में भी व्यापारी को वस्तुओं में मिलावट करने का निषेध किया गया था । १. "उत्तरावहे टंकणा णाम मेन्छा, ते सुवन्नदंतमादीहिं दक्षिणा वइगाई भंडाई
गेण्हति ते य अवरोप्परं भासं न जाणेति पन्छा पुंजे करोति हत्थेण अच्छादेति
आव इन्छा न पूरेति ताद ण अवणेति'' आवश्यकचूणि भाग १ पृ० १२० २. “कूडतुला कूडमाणी" प्रश्नव्याकरण २/३ ३. उपासकदशांग १/३४ ४. भगवतोसूत्र, ८/९/१०४ ५. सोमदेवसूरि-नीतिवाक्यामृतम् ८/९ ६. 'कूडतुल्लं कूडमाणं' उपासकदशांग १/३४; प्रश्नव्याकरण २/३; निशीथचूर्णि
भाग० १, गाथा ३२९ ७. कौटिलीय अर्थशास्त्र २/१९/३७ ८. मनुस्मृति ८/२०३