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तृतीय अध्याय : ७३ अन्दर डुबाकर मछली सहित बाहर निकालते थे और मछलियों को `छानकर पकड़ लेते थे ।' चतुर्थतः "नागफनी" का दूध जल में डालते थे जिनकी गंध से मछलियां जल के ऊपर आ जाती थीं और उन्हें पकड़ लिया जाता था । पंचमतः वृक्षों की शाखाओं से जल का विलोडन करते थे जिससे मछलियां व्याकुल होकर ऊपर आ जाती थीं और पकड़ ली जाती थीं। इन मछलियों को किनारों पर लाकर सुखाया भी जाता था । ४ जहाँ मछलियों को सुखाया जाता था उसे " मच्छखल" कहा गया । " 'विपाक सूत्र से ज्ञात होता है कि शौर्यदत्त के वेतनभोगी भृत्य, मत्स्यों को शूलाप्रोत कर पकाते, भूनते तथा उन्हें विक्रयार्थं राजमार्गों पर रखकर अपनी आजीविका चलाते थे ।
१. विपाकसूत्र ८ / १९ २ . वही
३. वही
४. वही
५. निशीथ चूर्णि भाग ३, पृ० २२२ ६. विपाकसूत्र, ८/२०