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तृतीय अध्याय : ५९
उपवन उद्यान वाटिका
कृषि के सहकारी धन्धे के रूप में फल-फूलों के उपवनों का उद्योग भी प्रचलित था । उस समय के लोग उद्यानों के वर्धन एवं पोषण में प्रवीण थे । सब्जियों के बगीचे लगाये जाते थे जिनमें विविध प्रकार के कंद और शाक उत्पन्न किये जाते थे । '
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औपपातिकसूत्र में वर्णित चम्पानगरी के उपवन ऐसे वृक्षों से युक्त थे जो सभी ऋतुओं के फल-फूलों से लदे रहते थे । २ विविध प्रकार की वनस्पतियों, पुष्पों, छायादार, फलदार और दारु वृक्षों के वर्णन से स्पष्ट होता है कि वनस्पति विद्या चरमोत्कर्ष पर थी ।
ज्ञाताधर्मकथांग से पता चलता है कि नन्दमणिकार ने राजगृह के बाहर एक पुष्करिणी खुदवाई थी, जिसके चारों ओर उपवन और उद्यान बने हुए थे । उद्यानों में विभिन्न प्रकार के फल-फूलों के वृक्ष थे । सम्पन्न व्यक्ति अपने निजी उद्यान भी लगाते थे । वसुदेवहिण्डी से ज्ञात होता है कि एक सार्थवाह ने अपने उद्यान की देखभाल के लिए एक व्यक्ति को नियुक्त किया । उस व्यक्ति ने कठिन परिश्रम से नये फूल और पौधे लगाकर उद्यान को बहुत सुन्दर बना दिया जिससे प्रसन्न होकर सार्थवाह ने उसे वस्त्रयुगल देकर सम्मानित किया और स्थायी नौकरी भी दे दी थी ।
बृहत्कल्पभाष्य से ज्ञात होता है कि तत्कालीन जीवन में उपवनों, उद्यानों का विशेष महत्त्व था । उपवनों में विशेष उत्सव मनाये जाते थे । जहाँ पर नागरिक नृत्य आदि के द्वारा अपना मनोरंजन करते थे । " सामान्य नागरिकों के लिये नगर के बाहर सार्वजनिक "उज्जाण" उद्यान होते थे । निशीथचूर्ण में राजाओं के उद्यान जो नगरों की सीमा पर होते थे, को " णिज्जाण' (उद्यान) कहा गया है । जब मेघकुमार गर्भ में था तब
१. आवश्यकचूर्णि भाग २, पृ० ३५०
२. औपपातिक सूत्र २
३. ज्ञाताधर्मकथांग १३/१८
४. संघदासगण - वसुदेव हिण्डी भाग १, पृ० ५०
५. बृहत्कल्पभाष्य, भाग ५, गाथा ५१५३; उत्तराध्ययनचूर्णि ४ / २२१; वसुदेव-हिण्डी, भाग १, पृ० ४६
६. निशीथचूर्णि भाग २, गाथा २४२६
७. वही, भाग २, गाथा २४२६