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तृतीय अध्याय : ५१ न पशुओं एवं पथिकों को रोकने के लिए कोई उपाय ही किये, इससे उसकी सारी फसल नष्ट हो गई। गन्ने की फसल को शृगाल (सियार) का बड़ा भय रहता था वे फसलों को नष्ट कर देते थे, इसलिए किसान खेतों के चारों ओर खाई खोद देते थे। सींग आदि बजाकर भी सियारों को भगाते थे।२ खेतों की रखवाली के लिए बालिकाओं तथा स्त्रियों को भी नियुक्त किया जाता था। बृहत्कल्पभाष्य से ज्ञात होता है कि नंदगोप की बालिका खेत की रक्षा करती हुई गाय और बछड़ों को भगाने के लिए "टिट् टिट्' शब्द करती थी और अगर इस पर भी वे नहीं भागते थे तो लाठी का प्रयोग करती थी। खेतों को बाड़ आदि से सुरक्षित करना कृषक का कर्तव्य माना जाता था। कौटिलीय अर्थशास्त्र के अनुसार, यदि बाड़ से सुरक्षित खेतों को पशु क्षति पहुँचाते थे तो पशुओं का स्वामी दण्ड का भागी होता था, किन्तु यदि खेत बाड़ रहित हो तो उसके लिये वह उत्तरदायी नहीं होता था। गौतम धर्मसूत्र के अनुसार गाय द्वारा खेत को हानि पहुँचाने पर पाँच मास, ऊँट और गधे द्वारा नष्ट करने पर छः मास, भेड़ और बकरी द्वारा नष्ट करने पर दो मास और अगर पूरी फसल ही नष्ट हो जाये तो पूरी फसल का मूल्य दण्ड-स्वरूप पशु के स्वामी से ग्रहण किया जाता था। लेकिन मनुस्मृति में उल्लेख है कि बाड़ रहित खेतों को अगर पशु नष्ट करते हैं तो पशुपालक दण्ड का भागी नहीं हो सकता और अगर बाड़ वाले खेतों को पशु नष्ट करें तो पशुपालक को दण्ड देना चाहिये। उपज की कटाई
उपज की कटाई को "लवण" कहा जाता था। जब धान्य पक जाते थे तो उनको काटने का प्रबन्ध किया जाता था। ज्ञाताधर्मकथांग में
१. बृहत्कल्पभाष्य, भाग २ गाथा ९८८ २. वही, भाग १ गाथा ७२१; दशवैकालिकचूणि पृष्ठ ७९ ३. टिट्टि ति नंदगोवस्स बालिया वच्छए निवारेइ । टिटि त्ति य मुद्धडए, सेसे लट्ठीनिवाएणं ।
बृहत्कल्पभाष्य भाग १ गाथा ७७ ४. कौटिलीय अर्थशास्त्र ३।१०।६२ ५. गौतम धर्मसूत्र २।३।१०, २०, २१, २२, २३, ६. मनुस्मृति ८।२३८ •७. वही ८।२४१