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४० : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन सीमाओं द्वारा खेत अलग-अलग विभक्त किये जाते थे। औपपातिक से ज्ञात होता है कि चम्पानगरी के खेत सीमायुक्त थे ।' व्यवहारभाष्य में उल्लेख है कि किसी कुटुम्बी ने क्षेत्र विभाजन सीमा के पास कुछ इसप्रकार जुताई की कि कुटुम्बी की सीमा-चिह्न ही मिट गये। जातक कथा से भी ज्ञात होता है कि खेतों को परस्पर पृथक् करने हेतु मध्य में सिंचाई की नालियाँ निर्मित की जाती थीं।३ खेतों के विभाजन से सूचित होता है कि भूमि के मापने का प्रबन्ध था। खेतों को मापने वाले रज्जुक कहे जाते थे। इनका कार्यालय रज्जुकसभा कहा जाता था। रज्जुक संभवतः आज के पटवारी की भाँति राज्य के कर्मचारी थे जो रस्सी से भूमि की माप करते थे। महावीर अपने जीवन के अन्तिम वर्षाकाल में पावा की रज्जुकसभा में ठहरे थे। जातक कथा में भी खेतों की माप करने वाले को रज्जुक वाहक कहा गया है।"
साधारण कृषकों के पास खेत छोटे ही होते थे जिन्हें वह स्वयं ही जोतते थे। लेकिन बड़े-बड़े खेतों का भी उल्लेख प्राप्त होता है । आनन्द गाथापति के पास ५०० हल-प्रमाण भूमि थी। इसी प्रकार उत्तराध्ययनणि से भी ज्ञात होता है कि मगध देश के परासर कुटुम्बी के खेत इतने बड़े थे कि उसमें ५०० हलवाहे काम करते थे। जातक कथा से भी बड़े खेतों की पुष्टि होती है। ब्राह्मण गाँव में एक किसान के पास एक सहस्र करीष का खेत था जिसमें उसने धान की बुआई की थी। खेतों में विविधप्रकार के धान्य उगाये जाते थे। सूत्रकृतांग में शालि, व्रीहि, कोद्रव ( धान-विशेष ) कंगु ( कंगनो) परक, राल आदि
१. "पण्णतसे सीमा' औपपातिकसूत्र १/१ २. व्यवहारभाष्य ७/४४३ ३. निदान जातक, जातक कथा आनन्द कौसल्यायन, १/७५ ४. कल्पसूत्र सूत्र ८४ ५. काम जातक-आनन्द कौसल्यायन, जातक कथा ५/३६७ ६. व्यवहारभाष्य ७/४४३ ७. उपासकदशांग १/२८ ८. जिनदासगणि-उत्तराध्ययनचूणि गाथा ११८ ९. शालिकेदारजातक-आनन्द कौसल्यायन, जातक कथा ४/४७९