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४४ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन
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कोटि का हल प्रतीत होता है । ' निशीथचूर्णि से ज्ञात होता है कि काष्ठ 'निर्मित एक उपकरण जिसे “कठोल्ल" कहा जाता था मिट्टी को विदोर्ण कर देता था ।` हल चलाने के बाद भी जो भूमि कड़ी रह जाती थी उसे कुदाल से तोड़ा जाता था ।
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इसके पश्चात् काष्ठ निर्मित उपकरण " मेइय" ( पाटा ) से भूमि समतल की जाती थी । अवांछित घास-पात निकालने हेतु 'सत्य' नामक उपकरण का उपयोग किया जाता था । " अनुमानतः वह लोहे का एक खुर्पी जैसा छोटा उपकरण था । भगवतीसूत्र में तैयार फसलों को काटने के लिए तीक्ष्ण धार वाले असिड का उल्लेख है, जिसे हँसुआ और द्रांति से समीकृत किया जा सकता है । ज्ञाताधर्मकथांग में द्रांति से फसल काटने का उल्लेख है । निशीथचूर्ण में भी द्राँति और हंसुए से फसल काटने के उल्लेख हैं ।' फसल कट जाने पर बैलों से मड़ाई करके "सुप्प" . ( बांस के बने उपकरण ) से धान्य और भूसे को अलग किया जाता था । निशीथचूर्णि से भी ज्ञात होता है कि फसल काटने के बाद अनाज की मड़ाई करके उसे सूप से फटका जाता था । १°
जैन ग्रन्थों में खेतों में उर्वरक डालने का विशेष उल्लेख उपलब्ध नहीं है पर कृषि की उन्नतावस्था से स्पष्ट है कि खेतों में उर्वरक का प्रयोग अवश्य होता था । मगध जनपद के "गोब्बर" ( गोबर ) गांव की शालि अच्छी मानी जाती थी । " सम्भवतः उस ग्राम में गोबर की सुलभता के कारण उसका नाम गोबर गांव पड़ गया होगा और वहां गोबर की खाद सहज
१. आवश्यकचूर्णि भाग १ पृ० ८१
२. कट्ठोल्ल कट्ठणाम हलादिणा वाहियं - निशीथचूर्गि भाग १ गाथा १४७
३. "कोद्दालकु लियदालण" प्रश्नव्याकरण १ / ३५
४. प्रश्नव्याकरण १ / १८
५. सत्यं णिसिरेज्जा" सूत्रकृतांग २ / २ / ६९८
६. भगवतीसूत्र ९४/७/७
७. निशीथचूर्णि भाग १ / गाथा २९३,
८. ज्ञाताधर्मकथांग ७ / १५
९. प्रश्नव्याकरण १ / १७
१०. “ वावणं जातेमु लू नेसु मलितेसु पूतेसु" निशोथचूर्णि भाग १ /गाथा २९३ ११. पिंडनियुक्ति गाथा ११८