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तृतीय अध्याय : ४५.
सुलभ होती होगी। पशुओं की अधिकता के कारण गोबर और राख भी प्रचुर मात्रा में सुलभ होती होगी। निश्चित ही इसका उपयोग उर्वरक के लिए होता रहा होगा । जंगलों में वृक्षों के सड़े पत्तों का उपयोग भी इसी प्रकार उर्वरक के लिए होता रहा होगा । आवश्यकचूर्णि में पशु के सींगों, हड्डियों और गन्ने के पत्तों को जलाकर खाद बनाने का उल्लेख है।' दशवकालिकचूर्णि में एक व्यापारी का उल्लेख है जो एक गाड़ी ऊँट की लेड़ी उज्जयिनी ले गया था। ऐसा प्रतीत होता है कि ऊँट की लेड़ी का खाद के लिए उपयोग किया जाता था। लगभग उसी काल में लिखे गये हर्षचरित में खेतों में खाद डालने का स्पष्ट उल्लेख हुआ है। किसान खाद और कूड़े के ढेरों को गाड़ियों में भरकर उन खेतों में डालते थे जिनकी उर्वरा शक्ति कम हो गई थी।
किसानों की खेती का मूल आधार बैल था । हल जोतने हेतु, कुओं से पानी निकालने के लिए, अन्न की मड़ाई करने हेतु तथा अनाज ढोने हेतु बैलों का प्रयोग होता था। कृषि के लिए बैलों को बधिया किया जाता था।" वज्जालग्ग में कहा गया है कि बहुत सा गोधन होने पर भी, कृषक एक ही उत्तम बैल से आनन्दित रहता था क्योंकि वही शकट में और वही पीठ पर भार वहन करता था । भूकर्षण __कृषि का शुभारम्भ, भूकर्षण से होता था। उपासकदशांग में इसे "फोडीकम्म' कहा गया है। शुभ मुहूर्त देखकर भूकर्षण प्रारम्भ किया जाता था। वर्षा ऋतु के आगमन के पूर्व ही किसान खेती के लिए आवश्यक वस्तुओं को इकट्ठा कर लेते थे।
१. जैन जगदीश चन्द्र-प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृष्ठ २४८ २. दशवकालिकचूणि पृष्ठ ५६ ३. अग्रवाल वासुदेव, हर्ष चरित का सांस्कृतिक अध्ययन, पृष्ठ १८३ ४. प्रश्नव्याकरण २/१३; बृहत्कल्पभाष्य भाग २ गाथा १२१९ ५. प्रश्नव्याकरण २.१३; उपासकदशांग २/३८; दशवैकालिक ७/२४-२५ ६. जयवल्लभ-वज्जालग्ग, गाया १८४ ७. उपासकदशांग १/५१ ८. निशीथचूणि भाग ३ गाथा ३१५२