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द्वितीय अध्याय : १५
पशुपालन के लिये उपयुक्त चरागाह भी सुलभ हो जाता था । भारत में जल सम्पदा का कभी अभाव न था । कृषि और यातायात के साधन के रूप में नदियों का बड़ा महत्त्व था । रुद्रदाम के जूनागढ़ अभिलेख से सूचित होता है कि महाक्षत्रप ने चन्द्रगुप्त मौर्य के काल में बनवाई गई सुदर्शन झील और उस पर बने बाँध का जीर्णोद्धार कराया था । इस प्रसंग से मौर्यकाल से ही सिंचाई के लिये झील और बाँध की उपयोगिता पर प्रकाश पड़ता है । ' पउमचरियं में सिंचाई के लिये नदियों पर बाँध बनाने का उल्लेख है ।" प्रश्नव्याकरण में सिंचाई के लिये पुष्करिणी, बावड़ी, कुआँ, तालाब, सरोवर आदि का उल्लेख है। नदियों और सरोवरों से मुक्ता, शंख, अंक और कौड़ियां प्राप्त होती थीं । विपाकसूत्र में नदियों, सरोवरों और तालाबों में मत्स्य पालन होने का भी उल्लेख है । उत्पादन में भूमि का महत्त्व
प्राचीनकाल में मनुष्य के आवास, कृषि और उद्योगों के लिए पर्याप्त भूमि थी । देश का अधिकांश भाग घने जंगलों से आच्छादित था । प्रश्नव्याकरण से ज्ञात होता है कि कृषि की मांग बढ़ने पर वन भूमि को कृषि भूमि में बदलने के लिये जंगलों को जलाकर साफ कर लिया जाता था । कौटिल्य के अनुसार जो किसान बंजर या ऊसर भूमि को अपने श्रम से कृषि योग्य बनाता था, वह जब तक राज्य को कर देता रहता था, भूमि पर उसका अधिकार बना रहता था । मनुस्मृति के अनुसार जो वृक्ष आदि काटकर वन्य-भूमि को कृषि योग्य बनाता था, वही उसका स्वामी हो जाता था । इन उल्लेखों से प्रतीत होता है कि मौर्यकाल और गुप्तकाल में कृषि और उद्योगों की वृद्धि के कारण कृषि भूमि की माँग बढ़ गई थी, जिसकी पूर्ति वन्य भूमि साफ कर की जाती थी ।
१. रुद्रदाम का जूनागढ़ अभिलेख - नारायण, ए० के० : प्राचीन भारतीय अभिलेख संग्रह २, पृ० ४३.
२. विविह जलजन्तविरइय - निरुद्धजलभरिय कूलतीराए - पउमचरियं १० / ३६. ३. प्रश्नव्याकरण १/१४, १/३.
४. विपाकसूत्र, ८/३.
५. गहणाई वणाई खेत खिल्लभूमि वल्लराई उतणद्यण संकडाई - प्रश्नव्याकरण
२/१३.
६. कौटिलीय अर्थशास्त्र, २/१/१९.
७. मनुस्मृति, ९ / ४४.