________________
अपेक्षा नहीं, लेकिन आस्था न हो तो कोई गति नहीं हो सकती, आस्था के बिना कोrd चीज संभव नहीं। लेकिन इसे जबरदस्ती नहीं ला सकते। इसे समझो। इसे जबरदस्ती लाना तुम्हारे अपने हाथ में नहीं। यदि तुम इसे जबरदस्ती लाते हो, तो यह नकली होगी। और 'अनास्था नकली आस्था से बेहतर है। नकली आस्था के साथ तो तुम अपने को व्यर्थ गंवा रहे हो। कहीं और आगे बढ़ जाना बेहतर है, जहां वास्तविक श्रद्धा घटित हो सकती है।
निर्णय मत करो., बस, अत्यो बढ़ते रहो। किसी दिन... कहीं, तुम्हारा गुरु प्रतीक्षा कर रहा है। और गुरु तुम्हें दिखाया नही जा सकता। कोई नहीं कह सकता, 'यहां जाओ और तुम्हें तुम्हारे सद्गुरु मिल जायेंगे।' तुम्हें खोजना होगा, तुम्हें कष्ट झेलना होगा, क्योंकि कष्ट झेलने और खोजने के
द्वारा ही तुम उसे देखने के योग्य होओगे। तुहारी आंखें स्वच्छ हो जायेंगी, आंसू गायब हो जायेंगे। तुम्हारी आंखों के आगे आये बादल छंट जायेंगे और बोध होगा कि यह हैं सदगुरु!
ऐसा कहा गया है कि एक सूफी, जुन्नैद, एक बूढ़े फकीर के पास आया। वह उससे कहने लगा, 'मैंने सुना है आप जानते हैं। मुझे राह दिखाइए।' बूढ़े आदमी ने उत्तर दिया, 'तुमने सुना है कि मैं जानता हूं। तुम नहीं जानते कि मैं जानता हूं।' जुन्नैद ने कहा, 'आपके प्रति मुझे कुछ अनुभूति नहीं हो रही, लेकिन बस एक बात करें, मुझे वह राह दिखायें जहां मैं अपने गुरु को पा सकू।' वह बूढ़ा आदमी बोला, 'पहले मक्का जाओ; तीर्थयात्राएं करो; और ऐसे-ऐसे आदमी को खोजो। वह पेड़ के नीचे बैठा होगा। उसकी आंखें ऐसी होगी कि जो रोशनी फेंकती होंगी। तुम उसके आसपास कस्तूरीसुगन्ध महसूस करोगे। जाओ और उसे खोजो।'
__ जुन्नैद बीस वर्ष तक यात्रा ही यात्रा करता रहा। जहां कहीं सुना कि कोई गुरु है, वहां गया। लेकिन उसे न तो वह पेडू मिला, न सुगन्ध, न कसूरी; और न ही वे आंखें जिनका वर्णन बूढ़े आदमी ने किया था। जिस व्यक्तित्व की खोज कर रहा था वह मिलने वाला ही नहीं था। और उसके पास एक बना-बनाया फार्मूला था, जिससे वह तुंरत ही निर्णय कर लेता. 'यह मेरा गुरु नहीं है और वह आगे बढ़ जाता। बीस वर्ष पश्चात वह एक खास वक्ष तक पहंचा। गुरु वहां था। कसरी की गंध धुंध की भांति उस व्यक्ति के आस-पास हवा में बह रही थी। उसकी आंखें प्रज्वलित था, और लाल प्रकाश उनसे छलक रहा था। यही था वह व्यक्ति। जुन्नैद गुरु के चरणों पर गिर पड़ा और बोला, 'गुरुदेव, मैं बीस वर्ष से आपको खोज रहा था।'
गुरु ने उत्तर दिया, 'मैं भी बीस वर्ष से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा था। फिर से मेरी ओर देखो। जुन्नैद ने देखा, यह वही व्यक्ति था जिसने बीस वर्ष पहले उसे गुरु को खोजने का मार्ग दिखाया था। जन्नैद रोने लगा और बोला, 'आपने ऐसा क्यों किया? क्या आपने मेरे साथ मजाक किया? बीस वर्ष बेकार हो गये हैं! आप क्यों नहीं कह सके कि आप मेरे गरु हैं?'