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अध्याय । ]
सुबोधिनी टीका ।
[ १३
I
अवस्था है, उस अवस्था में अविभाग प्रतिच्छेदरून अंश कलनाको गुणमें तिर्यगंश कल्पना कहते हैं । और उन प्रत्येक अविभाग प्रतिच्छेदों को गुणपर्याय कहते हैं । गुणोंमें जो अंश कल्पना की जाती है वह विष्कंभ क्रमसे नहीं होती क्योंकि देशका देशांश केवल एक प्रदेश व्यापी है किन्तु गुणका एक गुणांश एक समय में उस द्रयके समस्त देशको व्यापकर रहता है इस लिये गुणमें अंश कल्पना काल क्रमसे तरतम रूपसे की जाती है । प्रत्येक समय में जो अवस्था किसी गुणकी है उसही अवस्थाको गुणांश कहते हैं । एक गुणमें अनन्त कति किये जाते हैं । इन्हीं कलित गुणांशोंको अविभाग प्रतिच्छेद कहते हैं । गुणांशरूप अविभाग प्रतिच्छेदों का खुलासा इस प्रकार है । जैसे-बकरीके दूधमें चिक्कणता कम है । उससे अधिक क्रमसे गाय, भैंस, उटनी, भेड़के दूध में उत्तरोत्तर बढ़ी हुई चिक्कणता है । fare गुणके किसी में कम अंश हैं, किसीमें अधिक अंश हैं। ऐसे २ अंश प्रत्येक गुण में अनन्त हो सक्ते हैं । दूसरा दृष्टान्त ज्ञान गुणका है-सूक्ष्म निगोदिया ब्यपर्याप्त जीवमें अक्षर के अनन्त भाग व्यक्त ज्ञान है । उस ज्ञानमें भी अनन्त अविभाग प्रतिच्छेद हैं । जघन्य ज्ञानसे बढ़ा हुआ क्रमसे निगोदियाओं में ही अधिक २ है । उनसे अधिक २ द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय आदि जीवोंमें है । पञ्चेन्द्रिय-असंज्ञीसे संज्ञीमें अधिक हैं I मनुष्यों में किसीमें ज्यादा किसीमें कम स्पष्ट ही जाना जाता है । अथवा एक ही आत्मामें निगोदियाकी अवस्थासे लेकर उअर क्रम २ से केवलज्ञानतक एक ही ज्ञान गुणी अनन्त अवस्थायें हो जाती हैं। ये सब अवस्थायें ( भेद ) ज्ञान गुणके अंश हैं। इन्हीं अंशोंको लेकर कल्पना की जा सक्ती है कि अमुक पुरुष में इतना अधिक ज्ञान है, अमुक में इतना कम है। किसी गुणके सबसे जघन्य भेदको अंश कहते हैं। ऐसे २ समान अंश प्रत्येक गुणमें अनन्त होते हैं। तभी यह स्थूलतासे व्यवहार होता है कि इतने अंश ज्ञानके अमुकसे अमुक अधिक हैं। इसी प्रकार रूपमें व्यवहार होता है कि अमुक कपड़ेपर गहरा रंग है । अमुक पर फीका रंग है । गहरापन और फीकापन रूप गुणके ही अंशोंकी न्यूनता और अधिकता के निमित्तसे कहलाता है । इसी विषयको हम रुपयेके दृष्टान्तसे और भी स्पष्ट कर देते हैंएक रुपये के चौंसठ पैसे होते हैं । अर्थात् ६४ पैसे और एक रुपया दोनों बराबर हैं । इसीको दूसरे शब्दों में कहना चाहिये कि एक रुपये के ६४ भेद या अंश होते हैं। साथमें यह मी कल्पना कर लेना उचित है कि सबसे छोटा भेद (अंश) एक पैसा है। कल्पना करनेके बाद कहा जा सक्ता है कि अमुक व्यक्ति के पास इतने पैसे अधिक हैं। अमुकके पास उससे इतने पैसे कम हैं। यदि किसी के पास १० आना हों, और किसीके पास ६ आना हों तो जाना जा सक्ता है कि ६ आनावाले से १० आनावालेके पास १६ अंश अधिक धन है इस दृष्टान्तसे इतना ही अभिप्राय है। कि जघन्य अंशरूप अविभाग प्रतिच्छेदका बोध हो जाय । वास्तवमें अलग २ टुकड़े किसी गुणके नहीं
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