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अध्याय ।
सुबोधिनी टीका। ही ठीक है । दोनोंका अलग २ ग्रहण करना युक्ति संगत नहीं है, दोनोंका ग्रहण व्यर्थ ही पड़ता है?
उत्तरतन्न यतः सर्व स्वं तदुभयभावाध्यवसितमेवेति ।
अन्यतरस्थ विलोपे तदितरभावस्य निहवापत्तेः ॥ २९१ ॥
अर्थ-उपर्युक्त शंका ठीक नहीं है, क्योंकि सम्पूर्ण पदार्थ · अस्ति नास्ति ' स्वरूप उभय ( दोनों ) भावोंको लिये हुए हैं। यदि इन दोनों भावोंमेंसे किसी एकका भी लोप कर दिया जाय, तो बाकीका दूसरा भाव भी लुप्त हो जायगा ।
स यथा केवलमन्वयमात्रं वस्तु प्रतीयमानोपि । व्यतिरेकाभावे किल कथमन्वयसाधकश्च स्यात् ॥ २९२॥
अर्थ-यदि केवल ' अस्ति ' रूप वस्तुको माना जावे तो वह सदा अन्वयमात्र ही प्रतीत होगी, व्यतिरेक रूप नहीं होगी और विना व्यतिरेकभावके स्वीकार किये वह अन्वयकी साधक भी नहीं रहेगी।
भावार्थ--वस्तुमें एक अनुगत प्रतीति होती है, और दूसरी व्यावृत्त प्रतीति होती है। जो वस्तुमें सदा एकसा ही भाव जताती रहे उसे अनुगत प्रतीति अथवा अन्वयभाव कहते हैं
और जो वस्तुमें अवस्था भेदको प्रगट करै उसे व्यावृत्त प्रतीति अथवा व्यतिरक कहते हैं। वस्तुका पूर्ण स्वरूप दोनों *भावोंको मिलकर ही होता है । इसी लिये दोनों परस्पर सापेक्ष हैं। यदि इन दोनों में से एकको भी न माना जाय तो दूसरा भी नहीं ठहर सक्ता है । फिर
___* सामान्यविशेषाकारोल्लेख्यनुवृत्तप्रत्ययगोचरश्चाखिलो वाह्याध्यात्मिकप्रमेयोऽर्थः, न केवलमतो हेतो अनुवृत्तव्यावृत्तप्रत्ययगोचरत्वात् स तदात्मा; अपि तु पूर्वोत्तराकारपरिहारावाप्ति स्थितिलक्षणपरिणामेनाऽयक्रियोपपत्तेश्च । सामान्यविशेषयोर्बुद्धिभेदस्य प्रतीतिसिद्धत्वात् रूपरसोदस्तुल्यकालस्याऽभिन्नाश्रयवर्तिनोप्यतएव भेदप्रसिद्धेः । एकेन्द्रियाध्यवसेयत्वाज्जातिव्यक्तयोरभेदे वातातपादावप्यभेदप्रसङ्गः। सामान्यप्रतिभासो ह्यनुगताकारो विशेष प्रतिभासस्तु व्यावृत्ताकारोऽनुभूयते।
प्रमेयकमलमार्तण्ड अर्थात् पदार्थ पूर्वाकारको छोड़ता है उत्तराकारको ग्रहण करता है और स्व-स्वरूपकी स्थिति रखता है, इसी त्रितयात्मकपरिणामसे पदार्थमें सामान्यविशेषात्मक अर्थक्रिया होती है। सामान्य, विशेषकी प्रतीति भी पदार्थमें होती है-रूप रसादिक यद्यपि अभिन्न काल तथा अ. भिन्न क्षेत्रवती हैं तथापि उनकी भिन्न २ प्रतीति होती ही है । एकेन्द्रियादिक जीमि जाति
और व्यक्तिमें सर्वथा अभेदं ही मान लिया जाय तो वात आतप आदिमें भी अभेदका प्रसंग होगा । सामान्यका प्रतिभास अनुगतरूपसे होता है जैसे कि जातिका | विशेषका प्रतिभास ज्यावृत्तरूपसे होता है जैसे कि व्यक्तिका ।
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