Book Title: Panchadhyayi Purvardha
Author(s): Makkhanlal Shastri
Publisher: Granthprakashan Karyalay Indore

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Page 181
________________ पञ्चाध्यायी। घटज्ञानमें अन्य पदार्थ विषय नहीं पड़ सकते । पदार्थको ज्ञानमें कारण नहीं माननेवालोंके यहां (जैन सिद्धान्तमें) यह व्यवस्था नहीं बनेगी, ऐसा बौद्ध सिद्धान्त है परन्तु वह सिद्धान्त ऊपरके श्लोक द्वारा खण्डित हो चुका । क्योंकि पदार्थके न रहने पर भी पदार्थका ज्ञान होता है । पदार्थको ज्ञानमें कारण माननेसे अनेक दूषण आते हैं। जैसे कोई पुरुष चादर ओढ़े हुए और शिर खोले हुए सोरहा है कुछ दूरसे दूसरा आदमी सोनेवालेके काले केश देख कर उन्हें मच्छर समझ लेता है, ऐसा भ्रम होना प्रायः देखा जाता है। यदि पदार्थज्ञानमें पदार्थ ही कारण हो तो केशोंमें मच्छरोंका बोध सर्वथा नहीं होना चाहिये, वहांपर जो केश पदार्थ है उसीका बोध होना चाहिये । परन्तु यहांपर उलटी ही बात है । जो मच्छर पदार्थ नहीं हैं उसका तो बोध हो रहा है और जो केश पदार्थ उपस्थित है उसका बोध नहीं हो रहा है । उभय था अन्वय व्यभिचार, व्यतिरेक व्यभिचार दूषण आता है । इसलिये पदार्थज्ञानमें पदार्थ आवश्यक कारण नहीं है । जैसे-दीपक पदार्थोका प्रकाशक है, परन्तु दीपक पदार्थोसे उत्पन्न नहीं है । दीपकके दृष्टांतसे भी यह बात सिद्ध नहीं होती कि जो जिससे उत्पन्न होता है वही उसका प्रकाशक है । बौद्धकी यह युक्ति भी कि घटज्ञानमें घट ही विषय क्यों पड़ता है, पटादि क्यों नहीं ? ठीक नहीं है। क्योंकि मच्छरके विषय न पड़ते हुए भी मच्छरज्ञान हो जाता है अथवा केशके विषय पड़ते हुए भी केशज्ञान नहीं होता है । जैन सिद्धान्त तो घट ज्ञानमें घट ही विषय पड़ता है, पटज्ञानमें पट ही विषय पड़ता है, इस व्यवस्थामें योग्यता को कारण बतलाता है । योग्यता नाम उसके आवरणके क्षयोपशमका है। x जिस जातिका क्षयोपशम होता है उसी जातिका बोध होता है । यद्यपि एक समयमें घट पटादि बहुत पदार्थोके ज्ञान विषयक आचरणका क्षयोपशम हो जाता है, तथापि उपयोगकी प्रधानतासे उपयुक्त विषयका ही ज्ञान होता है । योग्यताको कारण माननेसे ही पदार्थव्यवस्था बनती है अन्यथा नहीं । बौद्ध सिद्धान्तके आधार पर पदार्थव्यवस्था माननेसे उपयुक्त दूषणोंके सिवा और भी अनेक दूषण आते हैं । इस विषयमें विशदज्ञान चाहनेवालोंको प्रमेयकमलमार्तण्डका अवलोकन करना चाहिये। . ___ इसका फल- फलमास्तिक्यनिदानं सद्रव्ये वास्तवप्रतीतिः स्यात् । भवति क्षणिकादिमते परमोपेक्षा यतो विनायासात् ॥ ५३९ ॥ x स्वावरणक्षय पशमलक्षणयोग्यत्य! हि प्रतिनियतमर्थ व्यवस्थापयति । परीक्षामुख अर्थात् भिन्न२ आवरण क्षयोपशम लक्षण योग्यता द्वारा ज्ञान उस योग्यताके भीतर आये हुए (प्रातेनियत) पदार्थका ही बोध करता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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