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अध्याय ।
सुबोधिनी टीका।
। १७७
____ अर्थ-वास्तवमें जितने भी वस्तुके अनन्त विशेष गुण हैं उतने ही नयवाद हैं, तथा जितनी भी वचनविवक्षा है वह सब नयवाद है । कारण विशेष गुणोंका परिज्ञान और वचनविकल्प दोनों ही विकल्पात्मक हैं। विकल्पज्ञानको ही नय कहते हैं, तथा जो निरपेक्ष नय हैं वे ही मिथ्या नय हैं । जो दूसरे नबी अपेक्षा रखते हैं वे नय यथार्थ नय हैं, क्योंकि सामान्य विशेषात्मक ही पार्थ है । इसलिये सामान्य विशेष दोनोंमें परस्पर अविनाभाव होनेसे सापेक्षता है । भावार्थ-वस्तुमें जितने भी गुण हैं वे सब जिस समय विवक्षित किये जाते हैं उस समय नय कहलाते हैं । इसलिये ज्ञानकी अपेक्षासे अनन्त नय हैं, क्योंकि जितना भी भेदरूप विज्ञान है सब नयवाद है । वचन तो नयवाद सुसिद्ध है। यहांपर विशेष गुणोंका उल्लेख इसलिये किया गया है कि शुद्धपदार्थके निरूपणमें तद्गुण ही नय कहा गया है । तद्गुण विशेष ही हो सक्ता है तथा निरपेक्ष नयको मिथ्या इसलिये कहा गया है कि नय, पदार्थके विवक्षित अंशका ही विवेचन करता है, निरपेक्ष अवस्थामें वह विवेचन एकान्तरूप पड़ता है, परन्तु पदार्थ उतना ही नहीं है जितना कि वह विवेचित किया गया है । उसके अन्य भी अनंत धर्म हैं। इसलिये वह एकान्त विवेचन या ज्ञान मिथ्या है । यदि अन्य धर्मोकी अपेक्षा रखकर किसी नयका प्रयोग किया जाता है तो वह समीचीन प्रयोग है, क्योंकि वह सापेक्ष नय वस्तुके एक अंशको तो कहता है परन्तु पदार्थको उस अंशरूप ही नहीं समझता है । इसलिये सापेक्ष नय सम्यक् नय है । निरपेक्ष नय मिथ्या नय है।
सापेक्षत् नियमादविनाभावस्त्व यथासिद्धः ।
अविनाभायोपि यथा येन विना जायते न तत्सिद्धिः॥५९१॥
अर्थ—सामान्य विशेषमें परस्पर सापेक्षता इसलिये है कि उनमें नियमसे अविनाभाव है। उनका अविनाभाव अन्यथा सिद्ध नहीं है अर्थात् और प्रकार नहीं बन सक्ता है। अविनाभाव उसे कहते हैं कि जिसके विना जिसकी सिद्धि न हो। भावार्थ-सामान्यके विना विशेष नहीं सिद्ध होता है और विशेषके विना सामान्य नहीं सिद्ध होता है। अतएव इन दोनोंमें अविनाभाव है । परस्पर अविनाभाव होनेके कारण ही दोनोंमें सापेक्षता है।
नयोंके नाम---- अस्त्युक्तो यस्य सतो यन्नामा यो गुणो विशेषात्मा । तत्पर्यायविशिष्टार सन्नामानो नया रथालायात् ॥५९२॥
अर्थ-जिस द्रव्यका जिस नामवाला विशेष गुण कहा जाता है, उस गुणकी पर्यायोंको विषय करनेवाला अथवा उस गुणको विषय करनेवाला नय भी आगमके अनुसार उसी नामसे कहा जाता है । इसी प्रकार नितने भी गुण विवक्षित किये जाते हैं वे जिस २
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