Book Title: Panchadhyayi Purvardha
Author(s): Makkhanlal Shastri
Publisher: Granthprakashan Karyalay Indore

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Page 197
________________ पश्चाध्यायी। [प्रथम A नामवाले हैं उनको प्रतिपादन करनेवाले या जाननेवाले नय भी उन्हीं नामोंसे कहे जाते हैं। दृष्टान्त-- अस्तित्वं नाम गुणः स्यादिति साधारणः सतस्तस्य। तत्पर्यायश्च नयः समासतोस्तित्वनय इति वा ।। ५९३ ।। अर्थ--द्रव्यका एक सामान्य गुण अस्तित्व नामवाला है, उस अस्तित्वको विषय करनेवाला नय भी संक्षेपसे अस्तित्व नय कहलाता है। कर्तृत्वं जीवगुणोस्त्वथ वैभाविकोऽथवा भावः। तत्पर्यायविशिष्टः कर्तृत्वनयो यथा नाम ॥ ५९४ ॥ अर्थ-जीवका कर्तृत्व गुण है, अथवा उसका वह वैभाविक भाव है, उस कर्तृत्व पर्यायको विषय करनेवाला नय भी कर्तृत्व नय कहलाता है। भावार्थ-कर्तृत्व गुणको विषय करनेवाला नय भी कर्तृत्व नय कहा जाता है, और क्रोध कर्तृत्व, मान कर्तृत्व, ज्ञान कर्तृत्व आदि पर्यायोंको विषय करनेवाला नय भी उसी नामसे कहा जाता है । ___अनया परिपाट्या किल नयचक्रं यावदस्ति बोद्धव्यम् । __एकैकं धर्म प्रति नयोपि चैकैक एव भवति यतः ॥५९५ ॥ __ अर्थ-जितना भी नयचक्र है वह सब इसी परिपाटी (शैली)से जान लेना चाहिये, क्योंकि एक २ धर्मके प्रति नय भी एक २ है । इसलिये वस्तुमें जितने धर्म हैं नय भी उतने और उन्हीं नामोंवाले हैं। सोदाहरणो यावान्नयो विशेषणविशेष्यरूपः स्यात् । व्यवहारापरनामा पर्यायार्थो नयो न द्रव्यार्थः ॥५९६ ॥ अर्थ-जितना भी उदाहरण सहित नय है और विशेषण विशेष्यरूप नय है वह सब पर्यायार्थिक नय है, उसीका दूसरा नाम व्यवहार नय है। उदाहरण पूर्वक विशेषण विशेष्यको विषय करनेवाला नय द्रव्यार्थिक नय नहीं है । भावार्थ-जो कुछ भी भेद विवक्षासे कहा जाता है वह सब व्यवहार अथवा पर्याय नय है। ननु चोक्तलक्षण इति यदि न द्रव्यार्थिको नयो नियमात् । कोऽसौ द्रव्यार्थिक इति पृष्टास्तचिन्हमाहुराचार्याः॥५९७॥ अर्थ- यदि उपर्युक्त लक्षणवाला द्रव्यार्थिक नय नहीं है तो फिर द्रव्यार्थिक नय कौन है ? इसप्रकार किसीने आचार्यसे प्रश्न किया, प्रश्नानुसार अब आचार्य द्रव्यार्थिक नयका लक्षण कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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