Book Title: Panchadhyayi Purvardha
Author(s): Makkhanlal Shastri
Publisher: Granthprakashan Karyalay Indore

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Page 232
________________ सुबोधिनी टीका। प्रमाणोंके लक्षणोंपर विचार किया जाय तो वे आकाशके पुष्पोंके समान मालूम होते हैं। अर्थात् असिद्ध ठहरते हैं । क्यों ? सो आगे कहा गया है। ज्ञान ही प्रमाण हैअर्थाद्यथा कथञ्चिज्ज्ञानादन्यत्र न प्रमाणत्वम् । करणादि विना ज्ञानादचेतनं कः प्रमाणयति ॥ ७२५ ॥ अर्थ-अर्थात् किसी भी प्रकार ज्ञानको छोड़कर अन्य किसी जड़ पदार्थमें प्रमाणता आ नहीं सकती है । विना ज्ञानके अचेतन करण, सन्निकर्ष इन्द्रिय आदिको कौन प्रमाण समझेगा ? अर्थात् प्रमाणका फल प्रमा-अज्ञान निवृत्तिरूप है, उसका कारण भी अज्ञान निवृत्तिरूप होना आवश्यक है इसलिये प्रमाण भी अज्ञान निवृत्ति ज्ञानस्वरूप होना चाहिये। जड़ पदार्थ प्रमेय हैं वे प्रमाण नहीं हो सकते हैं, अपने आपको जाननेवाला ही परका ज्ञाता हो सकता है जो स्वयं अज्ञानरूप है वह स्व-पर किसीको नहीं जना सकता है। इसलिये करण आदि जड़ हैं वे प्रमाण नहीं हो सकते, किन्तु ज्ञान ही प्रमाण है। तत्रान्तर्लीनत्वाज्ज्ञानसनाथं प्रमाणमिदमिति चेत् । ज्ञानं प्रमाणमिति यत्प्रकृतं न कथं प्रतीयेत ॥ ७२६ ॥ ___ अर्थ-यदि यह कहा जाय कि करण आदि वाह्य कारण हैं उनमें भीतर जाननेवाला ज्ञान ही है इसलिये ज्ञान सहित करण आदि प्रमाण हैं, तो ऐसा कहनेसे वही वात सिद्ध हुई कि जो प्रकृतमें हम (जैन) कह रहे हैं अर्थात् ज्ञान ही प्रमाण है । यही बात सिद्ध होगई । भावार्थ-प्रमाणमें सहायक सामग्री प्रकाश योग्यदेश, इन्द्रियव्यापार, कारक साफल्य, पदार्थ सान्निध्य सन्निकर्ष आदि कितने ही क्यों न होजाओ परन्तु पदार्थका बोध करनेवाला प्रमाण ज्ञान ही पड़ता है उसके विना सभी कारण सामग्री निरर्थक है। शंकाकारननु फलभूतं ज्ञानं तस्य तु करणं भवेत्प्रमाणमिति । ज्ञानस्य कृतार्थत्वात् फलवत्त्वमसिद्धमिदमिति चेत् ।।७२७॥ अर्थ-ज्ञानको प्रमाणका फल मानना चाहिये, उसके कारणको प्रमाण मानना चाहिये। यदि ज्ञानको ही प्रमाण मान लिया जाय तो ज्ञानका प्रयोजन तो हो चुका फिर फल क्या होगा ? फिर फल असिद्ध ही होगा । भावार्थ-शंकाकारका यह अभिप्राय है कि प्रमाण और प्रमाणका फल दोनों ही जुदे २ होने चाहिये और प्रमाण फल सहित ही होना चाहिये । ऐसी अवस्थामें ज्ञानको प्रमाणका फल और उस ज्ञानके कारण (करण-जड़) को प्रमाण मानना ही ठीक है, यदि ऐसा नहीं माना जाय और ज्ञानको ही प्रमाण माना जाय तो फिर प्रमाणका फल क्या ठहरेगा ? उसका अभाव ही हो जायगा? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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