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पाया।
[ प्रथम
२२२ ]
I
अर्थ — वर्त्तमानमें जो पदार्थ जिस पर्याय सहित हैं उसी पर्यायवाला उसे कहना भाव निक्षेप है । जैसे समवशरणमें विराजमान, चार घातिया कर्मों से रहित, अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनन्तसुख, अनन्तवीर्य, इस ज्ञानचतुष्टय (अनन्त चतुष्टय) से विशिष्ट, परम औदारिक शरीरवाले अरहन्त - जिनको जिन कहना । भावार्थ - भावनिक्षेप, वर्तमान तद्गुणवाले पदार्थ का वर्त्तमानमें ही निरूपण करता है इसलिये वह ऋजुसूत्र नय और एवंभूत नयका विषय है । यदि शब्दकी वाच्य मात्र पर्यायका निरूपण करता है तब तो वह एवंभूत नयका विषय है, और यदि पदार्थकी समस्त अर्थ पर्यायोंका वर्त्तमानमें निरूपण करता है तो वह ऋजु सूत्र नयका विषय है । * द्रव्यनिक्षेप और भाव निक्षेप दोनों ही तद्गुण हैं तथापि उनमें कालभेदसे भेद है ।
दिङ्मात्रमत्र कथितं व्यासादपि तच्चतुष्टयं यावत् । प्रत्येकमुदाहरणं ज्ञेयं जीवादिकेषु चार्थेषु ॥ ७४५ ॥
अर्थ — यहां पर चारों निक्षेपोंका डिङ्मात्र ( संक्षिप्त ) स्वरूप कहा गया है | इनका विस्तारसे कथन और प्रत्येकका उदाहरण जीवादि पदार्थोंमें सुघटित जानना चाहिये । दूसरे ग्रन्थ में भी सोदाहरण चारों निक्षेपोंका उल्लेख इस प्रकार है-
णाम जिणा जिण णामा ठवणजिणा जिणिदपडिमाए । दव्वजिणा जिणजीवा भावजिणा समवसरणत्था ॥ १ ॥
अर्थ -- जिन नाम रख देना नाम जिन कहलाता है । जिनेन्द्रकी प्रतिमा स्थापना जिन कहलाती है । जिनका जीव द्रव्यजिन कहलाता है और समवशरणमें विराजमान जिनेन्द्र भगवान् भाव जिन कहलाते हैं ।
प्रतिज्ञा---
उक्तं गुरूपदेशान्नयनिक्षेपप्रमाणमिति तावत् । द्रव्यगुणपर्ययाणामुपरि यथासंभवं दधाम्यधुना ॥ ७४३ ॥
अर्थ - गुरु (पूर्वाचार्य) के उपदेशसे नय, निक्षेप और प्रमाणका स्वरूप मैंने कहा । अब उनको द्रव्य गुण पर्यायोंके ऊपर यथायोग्य मैं ( ग्रन्थकार ) घटाता हूं । भावार्थ---अब
* कुछ लोगोंसे ऐसी शंका भी सुननेमें आती है कि भावनिक्षेप, ऋजुसूत्र नय और एवंभूत नय, इन तीनों में क्या अन्तर है, क्योंकि तीनों ही वर्तमान पदार्थका निरूपण करते हैं । ऐसे लोगोंकी शंकाका परिहार उपर्युक्त कथनसे भलीभांति होजाता है हम लिख चुके हैं कि निक्षेप और नयोंमें तो विषयविषयक मेद है । ऋजुसूत्र अर्थनय है, एवंभूत शब्दनय है अर्थात् ऋजुसूत्र नय पदार्थकी वर्तमान समस्त अर्थ पर्यायोंको ग्रहण करता है, और एवंभूत - बोले हुए चन्दकी या मात्र वर्तमान किसको ग्रहण करता है, इसलिये दोनोंमें महान् अन्तर है।
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