________________
-
vvvvvvvvvvvvvvvvvvvv
RAMMAAAAMANNAPAN
nanAmanANAINION
अध्याय।।
सुबोधिनी टीका। एक वात ही बन सक्ती है, दोनों नहीं । इस कथनसे यह वात भलीभांति सिद्ध है कि वेदोंकी प्रमाणताकी पोषक एक भी सद्युक्ति नहीं है। इन सब बातोंके सिवा वेदविहित अर्थों पर यदि दृष्टि डाली जाय तो वे सब ऐसे ही असम्बद्ध जान पड़ते हैं कि जैसे दशदाडिमादि वाक्य असम्बद्ध होते हैं। वेदोंका अर्थ पूर्वापर विरुद्ध और असमञ्जस है, वेदोंकी अप्रमाणताका विशेष निदर्शन करनेके लिये प्रमेयकमल मार्तण्ड और अष्टसहस्रीको देखना चाहिये ।
एवमनेकविधं स्यादिह मिथ्यामतकदम्बकं यावत् । __अनुपादेयमसारं वृद्धैः स्याद्वादवेदिभिः समयात् ॥ ७३७ ॥
अर्थ-इसप्रकार जितना भी अनेक विध प्रचलित मिथ्या मतोंका समूह है वह सब असार है, इसलिये वह शास्त्रानुसार स्याद्वादवेदी-वृद्ध पुरुषों द्वारा ग्रहण करने योग्य नहीं है।
निक्षेपोंके कहने की प्रतिज्ञा--- उक्तं प्रमाणलक्षणमनुभवगम्यं यथागमज्ञानात् ।
अधुना निक्षेपपदं संक्षेपाल्लक्ष्यते यथालक्षम ॥ ७३८॥
अर्थ-आगमज्ञानके अनुसार अनुभवमें आने योग्य प्रमाणका लक्षण कहा गया । अब संक्षेपसे निक्षेपोंका स्वरूप उनके लक्षणानुसार कहा जाता है ।
शङ्काकारननु निक्षेपो न नयो नच प्रमाण न चांशकं तस्य । पृथगुद्देश्यत्वादपि पृथगिव लक्ष्यं स्वलक्षणादितिचेत् ॥ ७३९॥
अर्थ-निक्षेप न नय है, और न प्रमाण है, न उसका अंश है, नय प्रमाणसे निक्षेपका उद्देश्य ही जुदा है । उद्देश्य जुदा होनेसे उसका लक्षण ही जुदा है, इसलिये लक्ष्य भी स्वतन्त्र होना चाहिये ? अर्थात् निक्षेप नय प्रमाणसे जब जुदा है तो उनके समान इसका भी स्वतन्त्र ही उल्लेख करना चाहिये ?
निक्षेपका स्वरूप (उत्तर) सत्यं गुणसाक्षेपो सविपक्षः स च नयः स्वपक्षपतिः।
य इह गुणाक्षेपः स्यादुपचरितः केवलं स निक्षेपः ॥ ७४०॥ __ अर्थ-नय तो गौण और मुख्यकी अपेक्षा रखता है, इसीलिये वह विपक्ष सहित है। नय सदा अपने ( विवक्षित ) पक्षका स्वामी है अर्थात् वह विवक्षित पक्ष पर आरूढ रहता है
और दूसरे प्रतिपक्ष नयकी अपेक्षा भी रखता है, निक्षेपमें यह बात नहीं है, यहां पर तो गौण पदार्थमें मुख्यका आक्षेप किया जाता है, इसलिये निक्षेप केवल उपचरित है। भावार्थ-नय
और निक्षेपका स्वरूप कहनेसे ही शंकाकारकी शंकाका परिहार होजाता है। सबसे बड़ा भेद तो इनमें यह है कि नय तो ज्ञान विकल्परूप है और निक्षेप पदार्थो में व्यवहारके लिये किये
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org