Book Title: Panchadhyayi Purvardha
Author(s): Makkhanlal Shastri
Publisher: Granthprakashan Karyalay Indore

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Page 193
________________ १७४ ] पञ्चाध्यायी । [ प्रथम अर्थ — उस भ्रमका समाधान यह है कि जो कोई भी कर्त्ता होगा वह अपने स्वभावका ही कर्त्ता होगा । उसका निमित्त कारण मात्र होनेपर भी कोई परभावका कर्त्ता अथवा भोक्ता नहीं होता है । दृष्टान्त- भवति स यथा कुलालः कर्त्ता भोक्ता यथात्मभावस्य । न तथा परभावस्य च कर्त्ता भोक्ता कदापि कलशस्य ॥५७७॥ अर्थ — कुम्हार सदा अपने स्वभावका ही कर्त्ता भोक्ता होता है वह परभाव - कलशका कर्त्ता भोक्ता कभी नहीं होता, अर्थात् कलशके बनाने में वह केवल निमित्त कारण है । निमित्त मात्र होने से वह उसका कर्त्ता भोक्ता नहीं कहा जासक्ता । उसीका उल्लेख– तदभिज्ञानं च यथा भवति घटो मृत्तिकास्वभावेन । अपि मृण्मयो घटः स्यान्न स्यादिह घटः कुलालमयः ॥५७८॥ अर्थ -- कुम्हार कलशका कर्ता क्यों नहीं है इस विषयमें यह दृष्टान्त प्रत्यक्ष है कि घट मिट्टीके स्वभाववाला होता है, अथवा मिट्टी स्वरूप ही वह होता है, परन्तु घट कभी कुम्हारके स्वभाववाला अथवा कुम्हारस्वरूप नहीं होता है । भावार्थ — जब घटके भीतर कुम्हारका एक भी गुण नहीं पाया जाता है तब कुम्हारने घटका क्या किया ? अर्थात् कुछ नहीं किया, केवल वह उसका निमित्त मात्र है । 4477 2. लोक व्यवहार मिथ्या है— अथ चेटकर्त्तासौ घटकारो जनपदोक्तिलेशोयम् । दुर्वारो भवतु तदा कानो हानिर्यदा नयाभासः ॥५७९ ॥ अर्थ---यदि यह कहाजाय कि लोकमें यह व्यवहार होता है कि घटकार - कुम्हार घटका बनानेवाला है; सो क्यों ? आचार्य कहते हैं कि उस व्यवहारको होने दो, उससे हमारी कोई हानि नहीं है परन्तु उसे नयाभास समझो, अर्थात् उसे नयाभास समझते हुए वरावर व्यवहार करो इससे हमारे कथन में कोई बाधा नहीं आती है । परन्तु यदि उसे नय समझने वाला लोकव्यवहार है तो वह मिथ्या है । तीसरा नयाभास --- अपरे वहिरात्मानो मिथ्यावादं वदन्ति दुर्मतयः । यदवडेपि परस्मिन् कर्त्ता भोक्ता परोपि भवति यथा ॥ ५८० ॥ अर्थ - और भी खोटी बुद्धिके धारण करनेवाले मिथ्यादृष्टी पुरुष मिथ्या बातें कहते हैं। जैसे --जो पर पदार्थ सर्वथा दूर है, जीवके साथ जो बँधा हुआ भी नहीं है उसका भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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