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अध्याय।
सुबोधनी टीका।
[ १०३
___ अर्थ-अथवा जिस प्रकार एक कनक पाषाण नामका पत्थर होता है उसमें कुछ तो सोनेका अंश रहता है, और कुछ पाषाणका अंश रहता है । उन दोनोंमें स्वर्णाश सारभूत होनेसे ग्रहण करने योग्य होता है ? और दूसरा पाषाणांश असारभूत होनेसे छोड़ने योग्य होता है। उसी प्रकार क्या सत और परिणाममें भी एक ग्रहण करने योग्य है और दूसरा छोड़ने योग्य है ?
__ क्या वाच्य वाचकके समान हैंअथ किं वागर्थबयमिव सम्पृक्तं सदर्थसंसिद्ध्यै । पानकवत्तनियमादर्थाभि व्यञ्जकं द्वैतात् ॥ ३५३ ॥
अर्थ-अथवा जिस प्रकार वचन और अर्थ दोनों मिले हुए ही पानकके समान पदार्थक साधक हैं उसी प्रकार क्या सत् और परिणाम भी मिले हुए पदार्थके सूचक हैं ? भावाये--धड़ी शब्दके कहनेसे उस गोल पदार्थका बोध होता है जो कि समयको बतलाता है, इसलिये घड़ी शब्द उस गोल घड़ीरूप अर्थका वाचक है, तथा वह गोल पदार्थ उस शब्दका वाच्य है । इसी प्रकार जितने भी शब्द हैं वे पदार्थोके संकेतरूप हैं । इसीको वाच्य वाचक सम्बन्ध कहते हैं। वाच्य वाचकका सम्बन्ध होनेसे ही पानकके समान पदार्थका बोध होता हैं। लवंग, इलाइची, सोंठ, कालीमिरच इन मिली हुई वस्तुओंसे जो स्वादु रस विशेष तैयार होता है उसीको पानक कहते हैं । जिस प्रकार पानकके समान वाच्य वाचकका सम्बन्ध होनेसे वाचक अपने सांकेतिक वाच्यका बोध कराता है, उसी प्रकार क्या सत् और परिणाम भी पदार्थक बोधक हैं ? अर्थात् जिस प्रकार वाच्यसे वाचक भिन्न है उसी प्रकार क्या सत् और परिणाम भी पदार्थसे भिन्न हैं ?
क्या भेरी दण्डके समान हैंअथ किमवश्यतया तद्वक्तव्यं स्यादनन्यथासिद्धेः। भेरी दण्डवदुभयोः संयोगादिव विवक्षितः सिद्धयेत् । ३५४ ।
अर्थ--अथवा जिस प्रकार भेरी और दण्डके संयोगसे ही शब्द होता है । केवल भेरी (नगाड़ा) से भी शब्द नहीं हो सक्ता और न केवल दण्डसे ही हो सकता है किंतु दोनोंके संयोगसे ही होता है इसलिये दोनोंका होना ही आवश्यक है । उसी प्रकार क्या सत् और परिणामके संयोगसे पदार्थकीसिद्धि होती है ? क्या दोनोंका कहना इसीलिये आवश्यक है ? अर्थात् जिस प्रकार भेरी और दण्ड दोनों ही भिन्न २ पदार्थ हैं परन्तु दोनोंके मेलसे वाद्य होता है, उसी प्रकार क्या सत् और परिणाम भी भिन्न२ हैं, तथा उनके .. मेलसे पदार्थकी सिद्धि होती है ?
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