________________
सुबोधिनी टीका ।
शङ्का कार-
ननु तत्र निदानमिदं परिणममाने यदेकदेशेस्य । वेोरिव पर्व किल परिणमनं सर्वदेशेषु ॥ ४६४ ॥ अर्थ – एक पदार्थ में अखण्डताका यह निदान - सूचक है कि उसके एक देशमें परिणमन होने पर सर्व देशमें परिणमन होता है । जिस प्रकार किसी वासको एक भागसे फिराने पर उसके सभी पर्वो ( गाठों ) में अर्थात् समस्त वासमें परिणमन ( हिलता ) होता है ? भावार्थ- वांसका दृष्टान्त देनेसे विदित है कि शंकाकार अनेक सत्तावाले पदार्थोंको भी एक ही समझता है।
उत्तर-
1
तन्न यतस्तद्ग्राहकमिव प्रमाणं च नास्त्यदृष्टान्तात् । केवलमन्वयमात्रादपि वा व्यतिरेकिणश्च नदसिद्धेः ॥ ४६५ ॥
१६९
अर्थ – एक देशमें परिणमन होनेसे सर्व देशोंमें परिणमन होना एक वस्तुकी अखण्डतामें निदान नहीं होसक्ता है। क्योंकि इस बातको सिद्ध करनेवाला न तो कोई प्रमाण ही है और न कोई उसका साधक दृष्टान्त ही है । यदि उपर्युक्त कथन ( एक देशमें परिणमन होनेसे सर्व देशमें परिणमन होता है) में अन्वय व्यतिरेक दोनों घटित होते हों तब तो उसकी सिद्धि हो सक्ती है, अन्यथा केवल अन्वयमात्रसे अथवा केवल व्यतिरेक मात्रसे उक्त कथन की सिद्धि नहीं हो सक्ती है। यहां पर सदृश परिणमनकी अपेक्षासे अन्वय यथा कथंचित् बन भी जाता है परन्तु व्यतिरेक सर्वथा ही नहीं बनता ।
शङ्काकार-
ननु चैकस्मिन् देशे कस्मिंश्चित्स्वन्यतरेपि हेतुवशात् । परिणमति परिणमन्ति हि देशाः सर्वे सदेकतस्त्वितिचेत् ॥ ४६६ ॥
अर्थ - कारणवश किसी अन्यतर एक देशमें परिणमन होने पर सर्व देशोंमें परिणमन होता ही है, क्योंकि उन सब प्रदेशोंकी एक ही सत्ता है । भावार्थ- शंकाकारने यह अन्वय वाक्य कहा है ।
I
Jain Education International
उत्तर-
न यतः सव्यभिचारः पक्षोनैकान्तिकत्वदोषत्वात् । परिणमति समयदेशे तद्देशाः परिणमन्ति चेति यथा ॥ ४६७ ॥ अर्थ - ऊपर जो अन्वय बतलाया गया है वह ठीक नहीं है क्योंकि वैसा अन्वय पक्ष अनैकान्तिक दोष आने से व्यभिचारी ( दोषी ) है । वह दोष इसप्रकार आता है
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org