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पञ्चाध्यायी ।
सर्वथा एक माननेमें दोष
अपि सर्वथा सदेकं स्यादिति पक्षो न साधनायालम् । इह तदवयवाभावे नियमात्सदवयविनोष्यभावत्वात् ॥ ५०१॥
अर्थ - सत् सर्वथा एक है, यह पक्ष भी वस्तुकी सिद्धि कराने में समर्थ नहीं है । वस्तुके अवयवोंके अभावमें वस्तुरूप अवयवी भी नियमसे सिद्ध नहीं होता है । सर्वथा अनेक मानने में दोष
[ प्रथम
अपि सदनेकं स्यादिति पक्षः कुशलो न सर्वथेति यतः । एकमनेकं स्यादिति नानेकं स्यादनेकमेकैकात् ॥ १०२ ॥
अर्थ- सत् सर्वथा अनेक है यह पक्ष भी सर्वथा ठीक नहीं है । क्योंकि एक एक मिलकर ही अनेक कहलाता है । अनेक ही अनेक नहीं कहलाता । किन्तु एक एक संख्या जोड़ से ही अनेक सिद्ध होता है । भावार्थ - उपरके श्लोकोंद्वारा द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावसे सत् में अनेकत्व सिद्ध किया गया है । उनसे पहले के श्लोकोंद्वारा सत्में एकत्व - अखण्डता सिद्ध की गई है । अखण्डता विषयमें ऊपर स्पष्ट विवेचन किया जा चुका है । यहां पर संक्षेपसे भेदपक्ष - अनेकत्व दिखला देना अयुक्त न होगा । वस्तुमें लक्षण भेदसे द्रव्य जुदा, गुण जुदा पर्याय जुदी प्रतीत होती है । इसलिये द्रव्यकी अपेक्षासे वस्तु अनेक है । वस्तु जितने प्रदेशोंमें विष्कंभ क्रमसे विस्तृत है उन प्रदेशोंमें जो प्रदेश जिस क्षेत्र में हैं वह वहीं है और दूसरे, दूसरे क्षेत्रोंमें जहां तहां हैं, वस्तुका एक प्रदेश दूसरे प्रदेशपर नहीं जाता है, यदि एक प्रदेश दूसरे प्रदेश पर चला जाय तो वस्तु एक प्रदेश मात्र ठहरेगी । इसलिये प्रदेश भेदसे बस्तु क्षेत्रकी अपेक्षासे अनेक है । तथा जो वस्तुकी एक समयकी अवस्था है वह दूसरे समयकी नहीं कही जा सक्ती, जो दूसरे समयकी अवस्था है वह उसी समयकी कहलायगी वह उससे भिन्न समयकी नहीं कही जायगी । इसलिये वस्तु कालकी अपेक्षासे अनेक है और जो वस्तुका एक गुण है वह दूसरा नहीं कहा जा सक्ता, जो पुद्गल (जड़) का रूप गुण है वह गन्ध अथवा रस नहीं कहा जा सक्ता । जितने गुण हैं सभी लक्षण भेदसे भिन्न हैं । इसलिये भावकी अपेक्षासे वस्तु अनेक है । इसप्रकार अपेक्षा भेदसे वस्तु कथञ्चित् एक और कञ्चित् अनेक है । जो विद्वान एक अनेक, भेद-अभेद, नित्य - अनित्य आदि धर्मोंको परस्पर विरोधी बतलाते हुए उनमें संशय विरोध, वैयधिकरण, संकर, व्यतिकर आदि दोष सिद्ध करनेकी चेष्ट करते हैं, उनकी ऐसी असंभव चेष्टा सूर्यमें अन्धकार सिद्ध करनेके समान प्रत्यक्ष बाधित है, उन्हें वस्तुस्वरूप पर दृष्टि डालकर यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने की चेष्टा करना चाहिये ।
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