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अध्याय ।
सुबोधिनी टीका ।
बड़े छोटे भाईका दृष्टान्त भी दृष्टान्ताभास है-- तबज्ज्येष्ठकनिष्ठभ्रातृतं शिरुद्धदृष्टान्तः । xसति चाऽधर्मिणि तत्वे तथाऽऽश्रयासिद्धदोषत्वात् ॥ ३८१ ॥
अपि कोपि परायत्तः सोपि परः सर्वथा परायत्तात् ।। सोपि परायत्तः स्यादत्यनवस्था प्रसङ्गदोषश्च ॥ ३८२ ।।
अर्थः-छोटे बड़े भाईका दृष्टान्त भी ठीक नहीं है, क्योंकि वह साध्यसे विरुद्ध पड़ता है। हमारा साध्य उभय धर्मात्मक पदार्थ है, परन्तु दृष्टान्त तृतीय पदार्थकी सत्ता सिद्ध करता है । छोटे बड़े भाई विना मातापिताके नहीं हो सक्ते हैं, मातापिताके होते हुए ही वे किसीकाल विशेषसे क्रमसे उत्पन्न हुए हैं । परन्तु यह बात सत् प.रणाममें नहीं है, न तो सत् परिणामका उन दोनोंसे अतिरिक्त कोई आश्रय ही है और न उनकी काल विशेषसे क्रमसे उत्पत्ति ही है, इसलिये धर्मीका अभाव होनेसे आश्रयःसिद्ध दोष आता है * दूसरी बात यह भी है कि इस दृष्टान्तसे अनवस्था दोष भी आता है क्योंकि भाई उनके माता पिताके पराधीन होते हैं । ऐसा पराधीनताका सिद्धान्त माननेमें जो कोई भी पर होगा उसे पराधीन ही मानना पड़ेगा, जिस प्रकार पुत्र पिताके आधीन है, पिता अपने पिताके अधीन है, वह अपने पिताके अधीन है, इसी प्रकार सत् और परिणामको पराधीन माननेपर अनवस्था दोष आता है - क्योंकि पराधीनतारूपी श्रृंखलाका कहीं अन्त नहीं आवेगा ।
कारकद्वय भा दृष्टान्ताभास है-- नार्थक्रियासमर्थो दृष्टान्तः कारकादिवद्धि यतः। साभिचारित्वादिह उपक्षतविपक्षवृत्तिश्च ॥ ३८३ ॥ वृक्षे शाखा हि यथा स्यादेकात्मनि तथैव नानात्वे स्थाल्यां दधीतिहेनोर्व्यभिचारी कारकः कथं न स्यात् ॥३८४॥ अपि सव्यभिचारित्वे यथाकथञ्चित्सपक्षदक्षश्चेत्। न यतः परपक्षरिपुर्यथा तथारिः स्वयं स्वपक्षस्य ॥ ३८५ ॥ साध्य देशांशादा सत्परिणामयस्य सांशत्वम् ।
तत्स्वाम्वेवाशिलोपे कस्थांशा अंशमात्रएनांशः ॥ ३८६ ॥ x “धर्मिणि चाख। नवा,' मा सशा धत पुस्तकमें पाठ है। * आश्रया सिद्ध दोषका विवेचन किया जा चुका है।
' 'अमण न त दार्थ ह. याऽविश्रान्तिरनवस्था, अर्थात् विना किसी प्रमाणके अनन्त पयों की पना कर चल जाना इसका नाम अन मा है। जहां पर प्रमाणभूत है वहां यह दोष नहीं समझा जाता जैसे-पिता पुत्र, बीज वृक्ष आदि कार्यकारण भावमें । पु. १५
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