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पञ्चाध्यायी।
[प्रथम
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नहीं होता है । परन्तु पर्यायोंमें यह वात नहीं है । वे क्रमभावी हैं। उनका सदा साथ नहीं रहता है जो पर्यायें पूर्व समयमें हैं वे उत्तर समयमें नहीं रहती। इसीलिये पर्यायें क्रम भावी हैं । जो गुण पहले समयमें हैं वे ही दूसरे समयमें हैं इसलिये गुण सहभावी हैं ।
फिर भी शंका-समाधानननुचैवमतिव्याप्तिः पर्यायेष्वपि गुणानुषंगत्वात् । पर्यायः पृथगिति चेत्सर्व सर्वस्य दुर्निवारत्वात् ॥ १४१ ।।
अर्थ-यदि गुणोंको साथरहनेसे सहभावी कहा गया है तो यह लक्षण पर्यायोंमें भी जाता है वे भी तो साथ ही साथ रहती हैं । इस लिये वे भी गुण कहलावेंगी। यह अति व्याप्ति दोष है, इस अतिव्याप्ति दोषको दूर करनेके लिये आवार्य कहते हैं कि पर्यायोंमें गुणोंका लक्षण नहीं आता है, क्योंकि पर्यायें साथ २ नहीं रहती हैं किन्तु भिन्न २ रहती हैं। फिर भी यदि लक्षणको दृषित ठहराया जायगा तो हरएक दूषण हरएकमें दुर्निवार हो जायगा अथवा पर्यायोंको भी अभिन्न माननेसे अवस्थाओंमें भेद न रहनेसे सभी सब रूप हो जायंगे अर्थात् फिर अवस्थाभेद न हो सकेगा।
___अन्वय शब्दका अर्थअनुरित्यव्युच्छिन्नप्रवाहरूपेण वर्तते यहा। __अयतीत्ययगत्यर्थाद्धातोरन्वर्थतोन्वयं द्रव्यम् ॥ १४२ ॥
अर्थ-अन्वय शब्दमें दो पद पड़े हुए हैं। एक अनु, दूसरा अय, अनु पदका यह अर्थ है कि विना किसी रुकावट ( अनर्गल ) के प्रवाहरूप और अय पद गत्यर्थक अय धातुसे बना है, इसका अर्थ होता है कि गमन करे, चला जाय । अनु और अय-अन्वयका मिलकर अर्थ होता है कि जो अनर्गल रीतिसे बरावर प्रवाह रूपसे चला जाय ऐसा अनुगत अर्थ वटनेसे द्रव्य अन्वय कहलाता है।
द्रव्यके पर्याय वाचक शब्द--- सत्ता सत्त्वं सदा सामान्यं द्रव्यमन्वयो वस्तु । अर्थो विधिरविशेषादेकार्थवाचका अमी शब्दाः ॥ १४३ ॥
अर्थ-सत्ता, सत्त्व, सत्, सामान्य, द्रव्य, अन्वय, वस्तु, अर्थ विधि ये सभी शब्द सामान्य रीतिसे एक द्रव्य रूप अर्थक वाचक हैं।
अयमन्वयोस्ति येषामन्वयिनस्ते भवन्ति गुणवाच्याः ।
अयमों वस्तुत्वात् स्वतः सपक्षा न पर्ययापेक्षाः ॥ १४४ ॥
अर्थ-यह अन्वय निनके है वे अन्वयी कहलाते हैं ऐसे अन्वयी गुण कहलाते हैं। इसका अर्थ यह है कि वास्तवमें गुण अपने ही पक्ष ( अन्वयपूर्वक ) में रहते हैं, पर्यायोंकी अपेक्षा नहीं रखते हैं।
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