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पञ्चाध्यायी ।
पर्यायाणामेतद्धर्म यवंशकल्पनं द्रव्ये । तस्मादिदमनवद्यं सर्व सुस्थं प्रमाणतश्चापि ॥ २६ ॥
अर्थ — यद्यपि द्रय अखण्ड प्रदेश ( देशांश ) वाला है और बड़ा भी है । तथापि उसमें विस्तार कपसे अंशोंका विभाग कलित किया जाता है । जिस प्रकार आकाशमें विस्तार क्रमसे एक अंगुल, दो अंगुल, एक विलस्त, एक हाथ आदि अंशविभाग किया जाता है । जिसमें फिर दुबारा अंश न किया जासके उसे ही निरंश अंश कहते हैं। ऐसे निरंशरूप अंश एक द्रपमें- पहला, दूसरा, तीसरा, चौथा, पाँचवां, संख्यात, अविभागीअसंख्यात, अनन्त, तथा च शब्दसे अनन्तानन्त तक होसते हैं । जितने एक द्रव्यमें अंश हैं, उतनी ही उस की पर्यायें समझनी चाहिये । प्रत्येक अंशको ही पर्याय कहते हैं । क्योंकि में जो अंशोंकी कल्पना की जाती है, वही पर्यायोंका स्वरूप है । द्रव्यकी एक समयकी पर्याय उस का एक अंश है । इस लिये उन सम्पूर्ण अंशोंका समूह ही द्रव्य है । दूसरे शब्दों में कहना चाहिये कि द्रव्यकी जितनी भी अनादि - अनन्त पर्यायें हैं, उन्हीं पर्यायोंका समूह है । अर्थात् प्रत्येक द्रव्यकी एक समय में एक पर्याय होती है, और कुल समय अनादि अनन्त है, इस लिये वस्तु भी अनादि अनन्त है । अतः उपर्युक्त कहा हुआ वस्तु-स्वरूप सर्वथा निर्दोष है, और सभी सुव्यवस्थित है। यही वस्तुका स्वरूप प्रमाणसे भली भांति सिद्ध है । भावार्थ - यद्यपि वस्तु अनन्त गुणोंकी अखण्ड पिण्डरूप अखण्ड प्रदेशी है तथापि उसमें अंशोंकी कल्पना की जाती है । वह अंश कल्पना दो प्रकार होती है - एक तिर्यक् अंश कल्पना, दूसरी ऊर्ध्वाश कलना । एक समय वर्ती आकारको अविभागी अनेक अश विभाजित करनेको तिर्यग् अंश कल्पना कहते हैं । इन प्रत्येक अविभागी अंशोंको द्रव्य पर्याय कहते हैं । का एक समय में एक आकार है । दूसरे समय में दूसरा आकार है । तीसरे सम
तीसरा आकार है । इसी प्रकार अनन्त समयों में अनन्त आकार हैं इस प्रकार कालके * द्रव्य आकारके अनन्त भेद हैं । इसीका नाम ऊर्ध्वाश कल्पना है । और इन अनन्त समयवर्ती अनन्त आकारोंमेंसे प्रत्येक समयवर्ती प्रत्येक आकारको व्यञ्जन पर्याय कहते हैं । में उपर्युक्त रीति से अंश कल्पना प्रदेशवत्व गुणके निमित्तसे होती है । अर्थात प्रदेशवत्व गुणके निमित्तसे में आकार होता है । उसी आकार में दो प्रकारकी कल्पना की जाती है । जिस प्रकार द्रव्यमें अंश कल्पना की जाती है उसी प्रकार गुणों में भी की जाती है । गुणकी एक समय में एक अवस्था है । दूसरे समय में दूसरी अवस्था है 1 तीसरे समय में तीसरी अवस्था है । इसी प्रकार कालक्रमसे एक गुणकी अनन्त समयों में अनन्त अवस्थायें हैं इसीका नाम गुणमें ऊर्ध्वंश कल्पना है । इन अनन्त समयवर्ती अनन्त अवस्थाओंप्रत्येक समवर्ती प्रत्येक अवस्थाको अर्थपर्याय कहते हैं । एक गुणकी एक समय में जो
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