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पञ्चाध्यायी।
[ प्रथम
द्रव्य समझा जाय तो एक देशमें चोट लगनेसे सब शरीरमें पीड़ा नहीं होनी चाहिये, जिस देशमें कष्ट पहुंचा है उसी देशमें पीडा होनी चाहिये परन्तु होता इसके सर्वथा प्रतिकूल है अर्थात् सम्पूर्ण शरीरमें एक आत्मा होनेसे सम्पूर्ण शरीरमें ही वेदना होती है इसलिये खण्डरूप एक देश स्वरूप वस्तुनहीं है किन्तु अखण्ड स्वरूप अनेक प्रदशी है।
अखण्ड-अनेकप्रदेशी द्रव्यमें दृष्टान्तप्रथमेतर पक्षे खलु यः परिणामः स सर्वदेशेषु ।
एको हि सर्वपर्वसु प्रकम्पते ताडितो वेणुः ॥ ३५ ॥
अर्थ-दूसरा पक्ष स्वीकार करने पर अर्थात् अनेक प्रदेशी-अखण्ड रूप द्रव्य मानने पर जो परिणमन होगा वह सर्व देशमें (सम्पूर्ण वस्तुमें) होगा। जिस प्रकार एक वेतको एक तरफसे हिलानेसे सारा वेत हिल जाता है ।
भावार्थ-वेतका दृष्टान्त मोटा है । इसलिये ग्राह्य अंश ( एक देश ) लेना चाहिये। वेत यद्यपि बहुतसे परमाणुओंका समूह है तथापि स्थूल दृष्टिसे वह एक ही द्रव्य समझा जाता है । इसी अंशमें उसका दृष्टान्त दिया गया है । वेत अखण्ड रूप वस्तु है इसलिये एक प्रदेशको हिलानेसे उसके सम्पूर्ण प्रदेश हिल जाते हैं । यदि अखण्ड स्वरूप अनेक प्रदेशी उसे न मानकर उसके एक २ प्रदेशको जुदा जुदा द्रव्य समझा जाय तो जिस देशमें वेतको हिलाया नावे उसी देशमें उसको हिलना चाहिये, सब देशमें नहीं परन्तु यह प्रत्यक्ष वाचित है। इसलिये वस्तु अनेक देशांशोंका अखण्ड पिण्ड है।
एक प्रदेशवाला भी द्रव्य हैएक प्रदेशवदपि द्रव्यं स्यात्खण्डवर्जितः स यथा ।
परमाणुरेवं शुद्धः कालाणुर्वा यथा स्वतः सिद्धः ॥ ३६ ॥
अर्थ-कोई द्रव्य एक प्रदेशवाला भी है और वह खण्ड रहित है अर्थात् अखण्ड एक प्रदेशी भी कोई द्रव्य है, जैसे पुद्गलका शुद्ध परमाणु और कालाणु । ये भी स्वतः सिद्ध
परन्तुन स्याद्रव्यं क्वचिदपि बहु प्रदेशेषु खण्डितो देशः।
तदपि द्रव्यमिति स्यादखण्डितानेकदेशमंदः ॥ ३७॥
अर्थ-परन्तु ऐसा द्रव्य कोई नहीं है कि बहु प्रदेशी होकर खण्ड-एक देश रूप हो इसलिये बहु प्रदेशवाला द्रव्य अखण्डरूप है।
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