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अध्याय । ]
बोधिनी टीका ।
शङ्काकार |
८१ ॥
समवायः समवायी यदि वा स्यात्सर्वथा तदेकार्थः । समुदायो वक्तव्यो न चापि समवायवानिति चेत् ॥ अर्थ – समवाय और समवायी अर्थात् गुण और द्रव्य दोनों ही सर्वथा एकार्थक हैं ऐसी अवस्था में गुण समुदाय ही कहना चाहिये । द्रव्यके कहने की कोई आवश्यकता नहीं है
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उत्तर----
तन्न यतः समुदायो नियतं समुदायिनः प्रतीतत्वात् ।
व्यक्तप्रमाणसाधितसिडत्वाद्वा सुसिद्धदृष्टान्तात् ॥ ८२ ॥ अर्थ - उपर्युक्त शंका ठीक नहीं है, क्योंकि समुदाय नियमसे समुदायीका होता है । यह बात प्रसिद्ध प्रमाणसे सिद्ध की हुई है और प्रसिद्धदृष्टान्त से भी यह बात सिद्ध होती है। भावार्थ - यद्यपि * सीकोंका समूह ही सोहनी (झाडू) है । तथापि सीकोंके समुदायले ही घरका कूड़ा दूर किया जाता है, सीकोंसे नहीं इसलिये समुदाय और समुदायी कथञ्चित् भिन्न भी हैं और कथञ्चित् अभिन्न भी हैं ।
खुलासा
स्पर्शरसगन्धवर्णा लक्षणभिन्ना यथा रसालफले ।
[ ३१
कथमपि हि पृथकर्तुं न तथा शक्यास्त्वखण्डदेशत्वात् ॥८३॥ अर्थ – यद्यपि आमके फलमें स्पर्श, रस, गंध और रूप भिन्न २ हैं क्योंकि इनके लक्षण भिन्न २ हैं तथापि सभी अखण्डरूपसे एकरूप हैं किसी प्रकार जुड़े २ नहीं किये जा सकते । भावार्थ -- स्पर्शका ज्ञान स्पर्शनेन्द्रियसे होता है, रसका ज्ञान रसना -इन्द्रियसे होता हैं, गन्धका नासिकासे होता है और रूपका चसे होता है इसलिये ये चारों ही भिन्न २ लक्षणवाले हैं, परन्तु चारोंका ही तादात्म्य सम्बन्ध है, कभी भी जुड़े २ नहीं हो सकते हैं। इसलिये. लक्षण भेदसे भिन्न हैं, समुदाय रूपसे अभिन्न हैं, अतएव गुण और गुणीमें कथञ्चित् भेद और कथश्चित अभेद स्पष्टतासे सिद्ध होता है ।
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सारांश---
अत एव यथा वाच्या देशगुणांशा विशेषरूपत्वात् । वक्तव्यं च तथा स्यादेकं द्रव्यं त एक सामान्यात् ॥८४॥ अर्थ - उपर्युक्त कथनसे यह बात भलीभांति सिद्ध हो चुकी कि विशेष अपेक्षा देश, गुण, पर्याय सभी जुदे २ हैं । और सामान्य कथन की अपेक्षासे वे ही कहलाते हैं ।
* सीकोका दृष्टान्त स्थूल दृष्टांत है । केवल समुदायांश में ही इसे घटित करना चाहिये ।
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कथन की
सब द्रव्य
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