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सहायक होगा। सम्यक्त्व के लिए पहले मार्गानुसारिता की जरूरत है। लोक विरुद्ध वस्तुओं अर्थात् निद्य कार्यो का - चोरी जुगार परस्त्रीगमन आदि सात व्यसनों का - त्याग जरूरी है। गुरुजनों की पूजा परोपकार, तथा जीवनभर सद्गुरु का संयोग तथा उनके वचनों को सेवा की मांग की है।
यहां दुख का क्षय व कर्म का क्षय मांगा है। पहले किये हुए कर्मों के फलस्वरूप दुःख या कष्ट अवश्य प्रावेगे, पर प्रभुकी सच्ची सेवा तभी मिली गिनी जायगी, जब कि कर्म से प्राप्त कष्ट चित्त की समाधि का हरण नहीं कर सके। यही दुःखक्षय है जो यहाँ मांगा है। अशुभ कर्मों का क्षय भी माँगा है। ये कर्मबध अनुबंध के कारण होते हैं । इस चित्तसमाधि की प्राप्ति तथा अनुबध तोड़ने के लिए प्रथम सूत्र आगे दिया है। तीसरी मांग समाधि मरण की है, उसका भी विचार बाद के प्रकरणों में किया जायगा । अन्त में मरणोत्तर बोधिलाभको माँग की गई है । इसके लिए धर्म के प्रति श्रद्धा जरूरी है और धर्म को किसी भी प्रकार की आशातना से, जो बोधि प्राप्त को रोकती है, बचना चाहिये।
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