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* साधुधर्म परिभावना *
(अब इसी सुन्दर पंचसूत्र के दूसरे सूत्र साधुधर्म परिभावना का प्रारंभ होता है। श्रावक गुणबीजाधान करके साधूधर्म की परिभावना करे । मोक्ष की तरफ गमन करने की पूर्वोक्त पांच बातों में से यह दूसरी है । यहाँ मूल सूत्र तथा उसका प्रथं व विवेचन दिये जाते हैं ।)
जायाए धम्मगुणपड़िवत्तिसद्धाए, भाविज्जा एएसि सरूवं, पय इसुदरत्त, अणुगामित्त, परोवयारित्त, परमत्थहे उत्त।
मिथ्यात्वादि कर्मों के क्षयोपशम से धर्मगुण प्राप्ति का भाव (इच्छा) प्रकट होने पर धर्म गुणों के स्वरूप का चिंतन करें। ये अनन्त कालके संक्लिष्ट परिणाम को विशुद्ध बनाने वाले होने से कितने स्वाभाविक रूपसे सुन्दर हैं, अनुसरण करने लायक हैं, परोपकारी है और परंपरा से मोक्ष साधक होने से परमार्थ के हेतु हैं।
शीघ्र ही मोक्ष प्राप्ति के लिए साधुधर्म अत्यन्त प्रावश्यक है । प्रतः उसके प्राथमिक अभ्यास के
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