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व निदिध्यासन से प्रशुभ अनुबन्ध क्षीण होकर संसार प्रवाह सूख जाता है।
पंच सूत्र से उल्लसित शुभ अध्यवसायोंसे अनुबन्ध का जहर दूर होकर अशुभ विपाक परंपरा का उनमें सामर्थ्य नहीं रहता । कटकबन्धको* तरह अल्प फल वाले तथा अपुनर्बन्ध अवस्थावाले होते हैं ।
उपरोक्त फल नुकसान के निवारण रूप कहा। अब सम्यक उपायों के सिद्धि स्वरूप फल का कथन करते है।
इस सूत्र तथा उसके अर्थका पठन, मनन आदि शुभकर्म तथा उनके अनुबन्धों को प्राकर्षित करता है, शुभ भाव वृद्धि से वे पुष्ट होते हैं तथा पराकाष्टा पर पहुँचते हैं। पचसूत्र की कितनी महिमा! वह सानुबन्ध शुभकर्म भी उत्कृष्ट होता है। जैसे अच्छे प्रोषध टोनिक से तुष्टि पुष्टि प्राप्त होती है । पुन: नये शुभ कर्म बंधवाकर परंपरा से मिर्षण के परम सुख का साधन बनता है । * सांप या बिच्छू के काटने पर उससे ऊपर के भागमें कपडा या रस्सी कस कर बांधे जाते हैं उससे जहर का फैलना कम होता है ।
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