Book Title: Mukti Ke Path Par
Author(s): Kulchandravijay, Amratlal Modi
Publisher: Progressive Printer

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Page 94
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परम देव पण एह छे, परम गुरु पण एह । परम धर्म प्रकास को, परम तत्त्व गुण एह १०६ । एसो चेतन प्रापको, गुण अनत भडार। अपनी महिमा बिराजते, सदा सरुप आधार ॥१०७।। चिद् रूपी चिन्मय सदा, चिदानद भगवान । शिवशंकर स्वयंभू नमु, परम ब्रह्म विज्ञान ॥१०८ । इणविध श्राप सरुप को, देखो महिमा अति सार । मगन हुग्रा निज रूपमें, सब पुद्गल परिहार ॥१०६।। उदधि अनंत गुणे भर्यो, ज्ञान तरंग अनेक । मर्यादा मूके नहीं, निज सरूप को टेक ॥११०॥ अपनी परिणति प्रादरी, निर्मल ज्ञान तरंग। रमण करूं निज रुप में, अब नहीं पुद्गल रंग ॥११॥ पुदगल पिंड शरीर ए, मैं हूँ चेतन राय । मैं अविनाशो एह तो, क्षण में विण सी जाय ॥११॥ अन्य सभावे परिणमे, विणसता नहीं वार । तिणसुमुज ममता किसी? पाडोसी व्यवहार ॥११३॥ एह शरीर की ऊपरे, रागद्वेष मुज नाहीं । रागद्वेष की परिणते, भमिये चिहुंगति मांही ॥११५॥ रागद्वेष परिणाम से, करम बध बहु होय । परभव दुःखदायक घणा, नरकादिक गति जोय॥११६॥ [८१] For Private And Personal Use Only

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